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१४४६) 'चरकसंहिता-भा० टी०। अभिलाषा न होना, अरोचक, अन्नका न पचना, अग्निकी विषमता, भोजन किये हुएका विदाही विपाक, भोजन पचनेके समय विनाही कारणसे छर्द होजाना,डकारोंका आना, अधोवायु, मूत्र, मल इनके वेगोंका न होना, आयेहुए वेगोंका यथोचित निःसर्ग न होना अथवा वेगोंका निवृत्त होजाना या किंचित् किंचित् आना, शूल, पेटमें वायुका फैलना, अफारा आंतोंका वोलना, रोमहर्ष, मलका गांठदार होना, भूख थोडी लगना, शरीर दुर्वल होजाना, पेटभरके भोजन न करसकना यह गुल्म रोगके पूर्वरूप होतेहैं ॥ १७ ॥
गुल्ममें चिकित्सा निर्देश । सर्वेष्वपिचगुल्मेषुनकश्चिद्वाताहतेसम्भवति। गुल्मस्तेषांसन्नि-. पातजमसाध्यंज्ञात्वानोपक्रमेत । एकदोषजेतुयथास्वमारम्भ · प्रणयेवसंस्त्रष्टास्तुसाधारणेनकर्मणोपचरेत् ॥ १८॥
संपूर्ण गुल्म वायुके विना नहीं होसकते अर्थात् वायु ही स्वयम् या अन्यदोर्षोंसे मिश्रित होकर उत्पन्न करताहै । इन पांच प्रकारके गुल्ममें सन्निपात जनित गुल्मवाले रोगीको असाध्य समझकर त्याग देनाचाहियो एक दोषसे उत्पन्न हुए गुल्मको अर्थात् वातजगुल्मको उसके कारण और लक्षणोंद्वारा जानकर चिकित्सा करे और अन्य तीन प्रकारके गुल्मोंमें यथोचित रीतिसे चिकित्सा करे ॥ १८ ॥
यद्वाअन्यदप्यविरुद्धमन्येत तदवचारयेद्विभज्यगुरुलाघवमुपद्रवाणांसमीक्ष्यगुरूपद्रवांस्त्वरमाण:चिकित्स्यजघन्यामितरां. स्त्वरमाणस्तुविशेषमुपलभ्यगुल्मेष्वात्ययिककर्मणिवातचिकिसितंप्रणयेत् ॥ १९॥ यदि सन्निपातज गुल्मको भी चिकित्सा योग्य समझे तो उसमें दोष और उपद्रवोंकी गुरुता और लघुता विचारकर पहिले भारी उपद्रवोंको शीघ्र जीत लेवे फिर मध्यम उपद्रवोंको शान्त करे तदनन्तर बाकीके अंशोंको छांटते हुए आधिक समय व्यतीत होगा ऐसा विचारकर वायुको चिकित्सा करे क्योंकि भारी उपद्रवोंके नष्ट होनेपर केवल वातमात्रकी चिकित्सा करनेते रोगीको परमलाभ पहुंच सकता है१९
स्नेहस्वेदौवातहरौस्नेहोपसहितश्चमृदुविरेचनंबस्तीनम्ललवण-मधुरांश्चरसान्युक्तितोऽवचारयेत्मारुतापशान्तस्वल्पनापिप्र
यत्नेनशक्यमन्योऽपिदोषोनियन्तुंगुल्मोप्वति ॥२०॥ . • स्नेहन करना, स्वेदन करना, एवम् स्नेहयुक्त मृदु विरेचन करना तथा अम्लल