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निदानस्थान-अ०३.
(४४५) कालमेंही या ऋतुकालमें वात-प्रकोप कारक पदार्थके सेवनसे उस स्त्रीके शरीरमें वायु कोपको प्राप्त होजाताहै ॥ १३ ॥
सप्रकुपितोयोन्यामुखमनुप्रविश्यावमुपरुणद्धिमासिमासितदार्तवमुपरुध्यमानंकुक्षिमभिवर्द्धयति ॥ १४॥ फिर वह कुपित हुआ वायु योनिके मुखमें प्रवेश करके स्वीके मासिक ऋतुका बद कर देता है फिर महीने २ ऋतुके रजको रोकता हुआ कूरखमें वृद्धिको प्राप्त होताहै अर्थात् रक्तका गोलासा बना कर कूखमें बढताजाताहै ॥ १४ ॥
तस्याःशूलकासातीसारछर्यरोचकाविपाकाङ्गमर्दनिद्रालस्यकफप्रसेका समुपजायन्तेस्तनयोश्चस्तन्यमोष्ठयोस्तनमण्डलयोश्च काष्ण्यंग्लानिःचक्षुषोर्मूछ हल्लासोदोहदःश्वयथुःपादयोरीषचोद्गमोरोमराज्यायोन्याश्चाजननत्वमपिचयोन्यादोर्गन्ध्यमा. स्रावश्ोपजायते ॥ १५॥ केवलश्चास्यागुल्मःस्पन्दतेतामगभौगर्भिणीमित्याहुर्मूढाः ॥ १६ ॥ इसके होनेसे उस स्त्रीके-शूल, खांसी,अतिसार, वमन, अरुचि,अन्नका न पचना अंगमर्द, निद्रा, आलस्य, कफका थूकना ये उत्पन्न होतेहै तथा दोनों स्तनों में दूध उत्पन्न होजाताहै । ओष्ठ और स्तनोंके अग्रभाग काले होजातेहैं एवम् ग्लानी, नेत्रोंका निकलसाजाना, मूर्छा, अलास तथा सव गर्भकेसे लक्षण होना, पाापर किंचित् सूजन, रोमाञ्च होना, योनिका गर्भ प्रगट करनेकसे लक्षण दीखना,योनिका दुर्गंधित तथा नावित होना और वह गोला किंचित फडकताहै । उस गुल्मयुक्त स्त्रीको मूर्खलोग गर्भवती समझने लगजातेहैं।ये रक्तजगुल्मके लक्षण हैं ॥१५॥१६॥
गुल्मके पूर्वरूप। एषांतुखलुपञ्चानांगुल्मानांप्रागभिनिवृत्तरिमानिपूर्वरूपाणि । तद्यथा--अनन्नाभिलषणमरोचकाविपाकावग्निवैषम्यविदाहोभुः तस्यपाककालेचायुक्याछर्दिरुद्वारोवातमूत्रपुरीषवेगाणामप्रादुर्भावःप्रादुर्भूतानाचाप्रवृत्तिःसङ्गःईषदागमवावातशलाटोपान्त्रकूजनपरिहर्षणाभिवृत्तपुरीषताअबुभुक्षादौर्बल्यंसौहित्यस्यचासहत्वमितिगुल्मपूर्वरूपाण ॥ १७॥ इन पांच प्रकारके ही गुल्मकि प्रगट होनेसे पहिले यह पूर्वरूप होतेहैं। जैसे अन्नको