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चरकसंहिता-भा० टी०। कालकाः। दद्गुश्चमदलंश्वित्रःपामाकोठास्त्रमण्डलम् । रक्तप्रदोषाजायन्तेशृणुमांसप्रदोषजान ॥ १६ ॥ कुष्ठ, विसर्प, पिडका, रक्तपित्त, प्रदर, गुदा, लिंग तथा मुखका पकना,प्लीहा,. गुल्म, विद्रधी, नीलिका, कामला, व्यंग, पिप्लव, तिल, कालक, दाद, चर्मदल, श्वेतकुष्ठ, पामा, कोष्ठरोग, रक्तमंडल तथा अन्यरक्तके विकार उत्पन्न होतेहैं । यह रक्त दूषित होनेके दोष कहे गये । अव थागे मांस दूषित होनेसे जो रोग होतेहैं. उनको वर्णन करतेहैं ॥ १५ ॥ १६ ॥
मांसदोषजरोग। अधिमांसार्बुदकीलगलशालूकशुण्डिकाः । पूतिमालालजीगण्डगण्डसालोपजिहिकाः ॥ १७॥ विद्यान्मांसाश्रयानुमेदःसंश्रयांस्तुप्रवच्स्यथानिदानानिप्रमेहाणांपूर्वरूपाणियानिच १८॥ मांसदूषित होनेसे अधिमांस अर्बुद, कीलक, गलमारूक, गलशुडी, पूतिमांस, अलजी, गलगंड, गण्डमाला और उपजिविका यह मांसाधित रेग होतेहैं । अब मेद दूषित होनेसे जो रोग होतेहैं उनका कथन करते हैं कि अष्टौनिंदनीय अध्यायमें तथा प्रमेहरोगके पूर्वरूपमें दूषित मेदरोगोंका वर्णन कियागयोहै ।। १७ ॥१८॥
अस्थिदोषज रोग। __ अध्यस्थिदन्तदन्तास्थिभेदःशलंविवर्णता।
केशलोमनखश्मश्रुदोषाश्चास्थिप्रकोपजाः ॥ १९॥ आस्थ दूषित होनेसे अध्यस्थि,अधिदन्त,दन्तभेद, अस्थिभेद, दन्तशूल,अस्थिशूल और विवर्णता होतेहैं तथा केश,लोम, नख और श्मश्रुइनमें भी अस्थि दूषित होनेसे विकार उत्पन्न होते हैं ॥ १९ ॥
मजादोषज रोग। रुपर्वणांभ्रमोमूर्छादर्शनंतमसोमताः।
अरुषांस्थलमूलानांपर्वजानाञ्चदर्शनम् ॥ २०॥ मजा दूषित होनेसे पर्वभेद, भ्रम, मूच्छा, अंधकार बडी २ मोटी तथा जडयुक्त अरुषिका नामक फुसियें पर्वस्थानमें ( संधिस्थानमें ) उत्पन्न होती हैं ।॥ २० ॥
शुक्रदोषज रोग। मज्जाप्रदोषाच्छुक्रस्यदोषारक्लैब्यमहर्षणम् । रोगिणंक्ली- . बमल्पायुविरूपंवाप्रजायते ॥ २१॥ नवालआयतेगसंपतति