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सूत्रस्थान - अ० ३०.
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व्यमानोभूय एवशरीरवृत्तिहेतुव्याधि कर्म कार्यकालकर्तृकरणविधिविनिश्वयोद्देशप्रकरणाः तानिचप्रकरणानि केवलेनो पढ़ेक्ष्यन्ते तन्त्रेण ॥ २६ ॥
शाखा, विद्या, सूत्र, ज्ञान, शास्त्र, तंत्र, आयुर्वेद यह सब शब्द पर्यायवाचक है अर्थात् इन सबमें किसी एकके कहनेसे आयुर्वेदका ही नाम जानना। यह सब शब्द तंत्र वाचक हुए | तंत्रार्थ उसके लक्षणों की व्याख्या में कथन कियागया है और फिर भी तंत्र का अर्थ अर्थात् विषय इसके प्रकरणोंसे जानाजाता है । जैसे शरीरवृत्ति, हेतु, व्याधि, कर्म, कार्य, काल, कर्त्ता, करण, विधि, विनिश्वय और कल्पना यह सब तंत्र अर्थात् आयुर्वेद के प्रकरण हैं इनके देखनेसे तंत्रार्थ अर्थात् तंत्र का विषय जानाजाताहै ॥ २६ ॥
आठ स्थानोंके नाम |
तन्त्रमष्टौस्थानानि । तद्यथा - श्लोक - निदान - विमानशारीरेन्द्रिय-चिकित्सित-कल्प - सिद्धिस्थानानि । तत्रत्रिंशदध्यायकंश्लोकस्थानम् । अष्टाध्यायकानिनिदानविमानशरीरस्थानानि । द्वादशकामिन्द्रियाणाम् । त्रिंशकंचिकित्सितानाम् । द्वादशके कल्पसिद्धिस्थानइति ॥ २७ ॥
तंत्र आठ स्थान हैं। जैसे श्लोक ( सूत्र ) स्थान, निदानस्थान, विमानस्थान, शारीरस्थान, इन्द्रियस्थान, चिकित्सास्थान, कल्पस्थान, और सिद्धिस्थान इन आठों में तसि अध्यायोंका सूत्रस्थान है, निदानस्थान, विमानस्थान और शारी-रस्थान इन सबमें आठआठ अध्याय हैं । इन्द्रियस्थानमें बारह अध्याय हैं । चिकित्सास्थान में तीस अध्याय हैं । कल्पस्थानमें बारह अध्याय हैं एवम् सिद्धि स्थानमें बारह अध्याय हैं ॥ २७ ॥
भवतिचात्र । द्वात्रिंशकेद्वादशकत्रयञ्च त्रीण्यष्टकान्येषुसमाप्तिरुक्ता । श्लोकौषधारिष्टविकल्पसिद्धिनिदानमानाश्रयसंज्ञकेषु ॥ २८ ॥
यहां पर कहा है कि दो स्थान तीस तीस अध्यायोंके हुए और तीन वारह अध्या-के हुए एवम् तीन आठ आठ अध्यायों में समाप्त किये गये हैं । इनमें सूत्रस्थान और चिकित्सास्थान तीस तीस अध्यायोंमें, इन्द्रियस्थान और कल्पस्थान एवम् सिद्धि