________________
निदानस्थान-अ० १......। लाषश्चक्षुषोराकुलत्वमस्रागमनंनिद्रायाआधिक्यमरतिर्जम्भाविनामोवेपथुश्रमभ्रमप्रलापजागरणलोमहर्षशब्दगीत-- वातातपासहत्वमरोचकाविपाकौदौर्बल्यमङ्गमई सदनमल्पप्राणतादीर्घसूत्रताआलस्यमुपंचितस्य कर्मणोहानिःप्रतीपता स्वकार्येषुगुरूणांवाक्येषुअभ्यसूयाबालेषुप्रद्वेषः स्वधर्मेषुअचिन्तामाल्यानुलेपभोजनक्लेशनमधुरेषुभक्ष्येषुप्रद्वेषोऽम्ललवणकटुकप्रियताचेतिज्वरपूर्वरूपाणि ॥३६ ॥ . . . सामान्य ज्वरके यह पूर्वरूप होतेहैं-जसे मुखकी विरसता, अंगोंका भारीपन, अन्नमें अरुचि,आंखोंमें दाह अथवा स्त्राव होना एवम् आंखोंका लाल होना अधिक निद्रा आना, चित्त न लगना तथा जंभाई आना, शरीरका ऐंठना एवम् कम्प,श्रम, भ्रम, प्रलाप, जागरण, रोमहर्ष, दन्तहर्ष इन सबका होना तथा शब्द, गीत,पवन, धूप इनकी इच्छा होना और क्षणमात्रमें इनसे द्वेष होना तथा अरुचि, अविषका, दुर्बलता, अङ्गमर्द, अवसाद, प्राणोंका क्षीण होना, कामको बहुत देरमें करना, आलस्य उपस्थित कामको छोडदेना, अपने कार्यमें बेपरवाही करना, गुरुजनोंकें। वाक्योंको न मानना, बालकों की वोलचाल बुरी मालूम होना,अपने धर्मका चिन्तन न करना, पुष्पमाला चन्दनादिका लेप और भोजन इनसे भी क्लेशं प्रतीत होना;:. मधुर पदार्थोंसे भी द्वेष होना, खट्टे, नमकीन, चरपरे पदार्थोकी इच्छा होना यह. सब लक्षण ज्वरके पूर्वरूपमें होते हैं ।। ३६ ॥ . .
ज्वरकारूप। प्राक्सन्तापादपिचैनसन्तापातमनुषचन्तीत्येतानिएकैकज्वरलिंगानिविस्तरसमासाभ्याम् ॥ ३७॥.. . . सन्ताप होनेसे अर्थात् ज्वरसे पहिले प्रगट होनेसे इसको ज्वरका पूर्वरूप कहते। हैं। और यह लक्षण ज्वर प्रगट होनेके अनन्तर होनेसे ज्वरके रूपमें गिने जाते हैं.' अर्थात पूर्वरूपावस्थामें जो संताप प्रगट नहीं था वह प्रगट होजानेपर रूप कहा जाता. है । सो यह लक्षण हरएंक.ज्वरमें संक्षेप और विस्तारसे जान लेना चाहिये॥३७॥
.. .... सोत्पत्तिक ज्वरका वर्णन। ज्वरस्तुखलुमहेश्वरकोपप्रभवःसर्वप्राणिनांप्राणहरोदेहेन्द्रिय
मनस्तापकरःप्रज्ञाबलवर्णहर्षोत्साहसादनार्तिश्रमक्लममोहा- .. . हारोपरोधसञ्जननोज्वरयतिशरीराणिइतिज्वरः । नान्येव्या- :