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चरकसंहिता-मा० टी। गद्योक्तोयःपुनःश्लोकैरर्थःसमनुगीयते । ....
तद्वयक्तिव्यवसायार्थद्विरुक्तःसनगीते ॥४५॥ गयों में कहाहुआ विषय यदि श्लोकों द्वारा फिर कथन करदियाजाय तो उसमें पुनरुक्ति दोष नहीं माननाचाहिये क्योंकि वह श्लोकोंमें मनुष्योंको याद रहसकता है आर प्रिय मालूम होताहै इसलिये कथन कियाजाताहै ॥ ४५ ॥ त्रिविधनामपायहेतुंपञ्चविधानगदान । गदलक्षणपOयान व्याधेःपञ्चविधंग्रहम् ॥ ४६॥ज्वरमष्टविधंतस्यप्रकृष्टास
कारणम् । पूर्वरूपञ्चरूपञ्चसंग्रहेभेषजस्यच ॥४७॥ ... व्याख्यातवावरस्यागेनिदानेविगतज्वरः । भगवानमिवे.
शायप्रणतायपुनर्वसुः॥४८॥ इतिचरकप्रतिसंस्कृतेतन्त्रज्वरनिदानो नामप्रथमोऽध्यायः॥१॥
अब अध्यायका उपसंहार करते हैं । कि इस ज्वरनिदाननामक अध्यायमें तीन प्रकारका कारण, पांच प्रकारका रोग विज्ञान, पांच प्रकारके रोगोंके लक्षणोंका पर्याय तथा उनका संग्रह, आठ प्रकारके ज्वर, उस ज्वरके विप्रकृष्ट और सनिकृष्ट कारण, पूर्वरूप, रूप, संक्षेपसे औषधिसंग्रह, संतापरहित भगवान् पुनर्वसुजीन इस ज्वरनिदानमें कथन कियेहैं ॥ ४६ ॥ ४७ ॥४८॥
इति श्रीमहर्षिचरकप्रणीतायुर्वेदीयसंहितायां निदानस्थाने टंकसालनिवासि पं०रामप्रसादवै.. · द्योपाध्यायविरचितप्रसादन्याख्यभाषाटीकायां ज्वरनिद नं नाम प्रथमोध्यायः ॥१॥
द्वितीयोऽध्यायः ।।
रकपित्तनिदानम्। अथातोरक्तपित्तनिदामंव्याख्यास्यामइतिहस्माहभगवानानेयः ।। अब हम रक्तपित्त के निदानका कथन करतेहैं । इस प्रकार भगवान् आत्रेयजी. कहने लगे।
- रक्तपित्तका कारण। पित्तयथाभूतलोहितपित्तमितिसंज्ञालभतेतत्तथानुव्याख्या- ... स्यामः । यदायस्तुजन्तुर्यवकोदालकोरदूषकप्रायाणिअन्ना-. .