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(.४२२) . चरकसंहिता-मा० टी०। तथासूत्रसंग्रहमात्रंचिकित्साया:चिकित्सितेषुचोत्तरकालंयथोद्दिष्टविकाराननुव्याख्यास्यामः ॥२०॥
और चिकित्साको भी सूत्रसंग्रह मात्रसे अर्थात् संक्षेपरूपसे कथन करते हैं. विशेषरूपसे तो संपूर्ण रोगोंका निदान और उपाय यथाक्रम चिकित्सा स्थानमें कथन करेंगे ॥ २० ॥
ज्वरके भेद । - इहखलुज्वरएवादोविकाराणामुपदिश्यते ।
तत्प्रथमत्वाच्छारीराणाम् ॥ २१ ॥ क्योंकि संपूर्ण शारीरिक विकारोंमें ज्वरही प्रधान माना गया है अथवा संपूर्ण विकारों में प्रथम ज्वरकी उत्पत्ति हुई है इसलिये इस निदानस्थानमें प्रथम ज्वरका ही कथन करते हैं ॥२१॥
अथखल्वष्टाभ्यःकारणेभ्योज्वर सञ्जायतमनुष्याणांतद्यथावातात् पित्तात्कफाद्वातपित्ताभ्यांपित्तश्लष्मभ्यांवातश्लेष्मभ्यां वातपित्तष्लेष्मभ्यःआगन्तोरष्टमात्कारणात । तस्यनिदानपूर्वरूपलिङ्गोपचयविशेषानुपदेक्ष्यामः ॥ २२ ॥ अब कहते हैं कि ज्वर आठ कारणोंसे मनुष्योंके शरीरमें उत्पन्न होता है। वह आठ कारण इस प्रकार हैं । जैसे-वातसे, पित्तसे, कफसे, वातपित्तसे, पित्तकफसे, वातकफसे एवम् वातपित्तकफसे आठवां आगन्तुक कारणसे सो उस आठ प्रकारके ज्वरको निदान, पूर्वरूप,रूप,उपशय और संप्राप्ति विशेषसे कथन करतेहैं॥२२॥
वायुकोपका कारण । तद्यथारूक्षलघुशीतव्यायामवमनविरेचनास्थापनशिरोविरेचनातियोगवेगसन्धारणानशनाभिघातव्यवायोद्वेगशोकशोणितातिसेकजागरणविषमशरीरन्यासेभ्योऽतिसेवितेभ्योवायुःप्रकोपमापद्यते ॥२३॥ वह इस प्रकार है। रूक्ष, लघु,शीतल पदार्थोंके सेवनसे, परिश्रम करनेसे,वमनविरेचन और आस्थापनके अतियोगसे, मलमूत्रादि वेगोंको रोकनसे, उपवास कर; नेसे,चोट लगनेसे,मैथुन करनेसे,उद्वेग मारै शोच होनेसे,रक्तके अत्यन्त निकलनेसे, रात्रि में जागनेसे, शरीरको ऊंचा नीचा तिरछा आदि करनेसे इन सब कारणोंके. अधिक सवेनसे शरीरमें वायुका कोप होताहै ॥ २३ ॥