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निदानस्थान-अ० १. (४२८) ... . णामधातुंरसनामानमन्वावेद्यरसस्वेदवहांनिचस्रोतांसिपिधा
यद्रवत्वादग्निमुपहत्यपक्तिस्थानादूष्माणंबहिरंनिरस्यप्रपांडयन्केवलंशरीरमुपपद्यतेतदाज्वरमभिनिर्वर्त्तयति ॥ २७ ॥ फिर वह पित्त कुपित होकर आमाशयसे गर्मीको उत्तेजन करताहुआ आहारका परिणामरूप जो रसनामक धातु है उसमें मिलकर स्वेद और रसके बहानेवाले छिद्रोंको रोक देताहै । फिर अपने द्रवसे जठरामिको हनन कर पाचकस्थानकी गर्मीको बाहर निकाल देताहै । तब अपना अधिकार पाकर शरीरको पीडन करता. हुआ पित्तज्वरको उत्पन्न करताहै ॥ २७ ॥
पित्तज्वरके लक्षण । तस्येमानिलिङ्गानिभवन्ति। तद्यथायुगपदेवकेवलेशरीरेज्वरा" भ्यागमनमभिवृद्धिर्वा । भुक्तस्यविदाहकालेमध्यन्दिनेऽद्धरा
त्रेशरदिवाविशेषेणकटुकास्यताप्राणमुखकण्ठोष्ठतालुपाकस्तृ- : रुणाभ्रमोमदोमछापित्तच्छर्दनमतीसारोऽन्नद्वेषःसदनस्वेदःप्रलापोरक्तकोठाभिनिवृत्तिःशरीरेहरितहारिद्रत्वंनखनयनवदनमूत्रपुरीषत्वचामत्वचामत्यर्थमुष्मणस्तीव्रभावोऽतिमात्रंदाहाशीताभिप्रायतानिदानोक्तानामनुपचयोविपरीतोपचयश्चेतिपित्तज्वरलिङ्गानिभवन्ति ॥ २८ ॥
उसके ये लक्षण होतेहैं ।शरीरमें एकदम ज्वरका वेग होना,भोजनके पाकके समय दिनके मध्यमें, अर्धरात्रिमें, शरदऋतुमें विशेष करके ज्वरकी वृद्धि होना या उत्पन्न होना, मुखमें कटुता, नाक, मुख, कण्ठ, ओष्ठ और तालुका पकना, तृषा, भ्रम, मोह, मूर्छा, मुखसे पित्तका निकलना, पतला दस्त होना, आहारमें अरुचि,स्वेद, प्रलाप, शरीरमें लाल वर्णके चकत्ते प्रगट होना, नेत्र, नख, मुख, मूत्र,पुरीष, त्वचा इनका हल्दाके समान पीलावर्ण होना, गर्मी अधिक प्रतीत होना, अधिकं दाह होना, शीतल वस्तुकी इच्छा होना एवम् उष्ण वस्तुओंसे रोगका बढना, शीतल बस्तुओंसे शान्त होना यह पित्तज्वरके लक्षण होतेहैं ॥२८॥ . .:.
कफप्रकोपका कारण । स्निग्धमधुरगुरुशीतपिच्छिलाम्ल-लवण-दिवास्वप्नहर्षव्या. यामेभ्योऽतिसेवितेत्यश्लेष्माप्रकोपमापद्यते ॥ २९॥ . .