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निदानस्थान-अ० १.
(४१९) 'वह रोग निदान, पूर्वरूप, रूप, उपशय, संप्राप्ति इन पांच प्रकारोंसे जाना जा: सकताहै । अर्थात् रोगके बतलानेवाले यह पांच प्रकार हैं ॥५॥
निदानका लक्षण । तत्रनिदानकारणमित्युक्तमये॥६॥ उनमें निदान कारणको कहतेहैं-यह पहिले कथन कर आये हैं । (निदान रोगके उत्पन्न करनेवाले कारण को कहते हैं)॥६॥ .
पूर्वरूपके लक्षण। रूपंप्रागुत्पत्तिलक्षणव्याधेः ॥७॥ रोग उत्सन्न होनेसे प्रथम होनेवाले लक्षणोंको पूर्वरूप कहते हैं ॥७॥
लिङ्गके लक्षण । प्रादुर्भूतलक्षणंपुनर्लिङ्गंतत्रलिङ्गमारुतिलक्षणचिह्नसंस्थानं व्यञ्जनरूपमित्यनान्तरम् ॥८॥ च्याधिक प्रगट हो जानेको रूप अथवा लक्षण कहते हैं । या यों काहये कि, व्याधिक प्रगट होजाने पर व्याधिक जो लक्षण होते हैं उनको रूप कहते हैं लिङ्ग, आकृति, लक्षण, चिह्न, संस्थान, व्यंजन और रूप यह सब शब्द एकही अर्थक बाचक हैं ॥८॥
उपशयके लक्षण। उपयशः पुनर्हेतुाधिविपरीतानां विपरीतार्थकारिणाञ्चौषधाहारविहाराणां उपयोगःसुखानुबन्धः ॥९॥ हेतुसे विपरीत, व्याविसे विपरीत और हेतु व्याधि इन दोनोंके विपरीत तथा मर्थक करनेवाले औषधि आहार विहारंका उपयोग करना सुखकारक अर्थात् आरोग्यकारी होता है उसीको उपशय कहते हैं। और उसीको सात्म्य कहते हैं। तात्पर्य
यह हुआ कि रोगोत्पादक हेतुसे विपरीत और व्याधिसे विपरीत तथा हेतु और । व्याधि इन दोनोंसे विपरीत और विपरीत अर्थ करनेवाला अर्थात व्याधि और
व्याधिके कारणको हटानेवाला तथा दोनोंको हटानेवाला औषध अन्न और विहार सुखको देनेवाला होता है उसीको सात्म्य (शरीरके अनुकूल ) और उपशय. कहते हैं ॥९॥
संप्राप्तिके पर्याय । - संप्राप्तिातिरागतिरित्यनान्तरव्याधेः॥१०॥