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अथ निदानस्थानम् ।..
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प्रथमोऽध्यायः ।
अथातोज्वरनिदानं व्याख्यास्याम इतिहस्माहभगवानात्रेयः । अव हम ज्वरनिदानकी व्याख्या करते हैं, इस प्रकार भगवान् आत्रेयजी कथन करने लगे ।
निदान के पर्यायवाची शब्द । इहखलुहेतुर्निमित्तमायतनं कर्त्ता कारणंप्रत्ययः समुत्थाननिदानमित्यनर्थान्तरम् ॥ १॥
इस शास्त्र में - हेतु, निमित्त, कर्त्ता, कारण, प्रत्यय, समुत्थान, निदान इन सब शब्दका एक ही अर्थ है अर्थात् यह सब शब्द निदानके वाचक हैं ॥ १ ॥ त्रिविध निदान ।
तत्त्रिविधम् असात्म्येन्द्रियार्थसंयोगः प्रज्ञापराधः परिणाम
श्वेति ॥ २ ॥
वह निदान तीन प्रकारका है - १असात्म्येन्द्रियार्थ, २ प्रज्ञापराध, ३परिणाम || २ || व्याधियोंके भेद | अतस्त्रिविधविकल्पान्याधयः प्रादुर्भवन्त्याश्नय सौम्यवायव्याः द्विविधाश्चापरेराजसास्तामसाश्च ॥ ३ ॥
· निदान - तीन प्रकारका होनेसे व्याधियां भी तीन प्रकार की ही होती हैं । उन तीनोंमें शारीरिक व्याधि - वात, पित्त, कफजनित होनेसे तीन प्रकार की होते हैं । मनासिक व्याधि - राजस और तामस भेदसे दो प्रकारकी हैं ॥ ३ ॥ व्याधि के पर्याय शब्द |
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तत्रव्याधिरामयोगदआतङ्को यक्ष्माज्वरोविकार इत्यनर्थान्तरम् ॥४॥ -व्याधि, आमय, गद, आतंक, यक्ष्मा, ज्वर, विकार, और रोग यह सब शब्द एक ही अर्थवाले हैं । अर्थात् रोगके वाचक हैं ॥ ४ ॥
रोगकी उपलब्धिके विषय । तस्योपलब्धिर्निदान पूर्वरूपलिङ्गोपशयसम्प्रातितश्च ॥ ५ ॥