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चरकसंहिता-भा० टी०। इस प्रकार यह प्रश्नाष्टक कहागया अर्थात् जो पहिले आठ प्रश्नोंको कथन कियाथा उनके उत्तर रूपमें यह प्रश्नाष्टककी मीमांसा कीगई सो संपूर्णरूपसे 'यथावत तंत्रके संग्रहको कथन कियागयाहै ॥ ६५ ॥
अज्ञवैद्यके लक्षण । सन्तिपाल्लविकोत्पाताःसंक्षोभंजनयन्तिये।वर्तकानामिवोत्पाताः सहसैवविभाविताः।तस्मात्तान्पूर्वसंजल्पेसर्वत्राष्टकमादिशेत॥६६॥परस्परपरीक्षार्थनात्रशास्त्रविदांवलम् । शब्दमात्रेणतन्त्रस्यकेवलस्यैकदोशिकाः । भ्रमन्त्यल्पबलास्तन्त्रेज्याशब्देनैववर्तकाः ॥६७॥ बहुतसेलोग इधरउधरसे एकाध वात सीखकर इस प्रकार अभिमान और क्रोध दिखातेहैं जैसे-वटेरपक्षी अपने चोंचसे एक पत्रको उठाकर इधरउधर उलटा और -सीधा नाच करताहै ठीक उसी प्रकार यह लोग भी किसी ग्रंथकी एकाधमूलवातको याद कर घमण्डी वैद्यराज बन बैठतेहैं । इसलिये उनसे बात करतेही प्रथम प्रश्नाष्टक ( पूर्वोक्त आठ प्रश्न कर देनाचाहिये । इसपर यथार्थ और अयथार्थ कथन कर• नेमें अथवा पर अपरकी परीक्षाके लिये प्रश्नाष्टक कियेजानेपर आयुर्वेदके न जान'नेवाले मनुष्यका बल स्पष्टरूपसे दिखाई देजाताहै । तात्पर्य यह हुआ कि आयुवैदका ज्ञाता ही प्रश्नाष्टकका यथोचित उत्तर देसकताहै । जो मनुष्य केवल एकदेशका जाननेवाला है वह इस प्रश्नाष्टकको सुनकर इस प्रकार घबराजाताहै जैसेधनुषकी टंकारको सुनकर बटेर उडजायाकरतेहैं ॥ ६६ ॥ ६७ ॥
पशुः पशूनांदौर्बल्यात्कश्चिन्मध्येवृकायते। समत्ववृकमासाद्य प्रकृतिभजतेपशुः ॥६८॥ तद्वदज्ञोऽज्ञमध्यस्थःकश्चिन्मौख..
य॑साधनः । स्थापयत्याप्तमात्मानमाप्तन्त्वासायभिद्यते ॥६९॥ जैसे-दुर्बल पशुओंमें बलवान् पशु भेडियेका आकार बनाकर अपने आपको महा 'पराक्रमी जंचाता है परन्तु असली भेडियेके आजानेपर जैसा वह पशु-होताहै वैसाही होकर भागना पडताहै । ठीक उसी प्रकार मूखोंके बीचमें बकवाद करनेवाला चपल मनुष्यभी अपने आपको बडाभारी योग्य और प्रामाणिक जंचाताहै और किसी योग्य पंडितके आजानेपर पूर्वोक्त पशुके समान पूंछको छिपाता फिरताहै६८॥६९॥ .
बभ्रमंढइवोर्णाभिरबुद्धिरबहुश्रुतः । ... किंवैवक्ष्यतिसंजल्पेकुण्डभेदीजडोअथा ॥ ७० ॥ .