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सूत्रस्थान-भ०३०
महाफलेकी निरुक्ति। तत्फलाविविर्धावातःफलन्तीतिमहाफलाः॥ध्यानाद्धमन्यः स्रवणास्त्रोतांसिसरणाच्छिराः॥ १०॥ तन्महत्तामहामूलास्तञ्चौजःपरिरक्षता॥परिहार्याविशेषेणमनसोदुःखहेतवः ॥११॥
शरीरको जीवित रखनेवाली अनेक किस्मकी वायुमें हृदयका फल है। उन 'यवनरूपी फलोंको हृदयसे लगी हुई धमनिय फलती हैं। इसीलिये इनको महाफला कहाजाताहै शरीरमें धमन ( रससे पूर्ण) करती हैं इसलिये धमनी कहीजाती हैं। श्रवण(पोषणकर्ता रसका स्राव करनेसे)स्रोत कहेजाते हैं । रसका सरण ( रसका अन्य स्थानमें पहुंचाना) करनेसे इनका नाम सिरा है ॥ १० ॥ उस हृदय तथा ‘उन धमनियों एवम् उस ओजकी रक्षा करते हुए मनुष्यको दुःखोंके हेतुओंसे बचना चाहिये अर्थात् जो जो वस्तुयें अथवा कृत्य इन हृदय और ओजमें हानिका. रक हों उनको त्याग देना चाहिये ॥ ११॥
हृायत्स्यायदोजस्यंस्रोतसांयत्प्रसादनम् ।।
तत्तत्सेव्यंप्रयत्नेनप्रंशमोज्ञानमेवच ॥ १२ ॥ जो पदार्थ हृदयको प्रिय हो तथा ओजको वढानेवाला हो एवम् धमनियोंके -स्रोतोंको प्रसन्न करनेवाला हो उसका ही यत्नपूर्वक सेवन करनाचाहिये एवंम् यत्नपूर्वक शान्ति और ज्ञानको धारण करनाचाहिये ॥ १२ ॥
ओज बलादि वर्द्धक एक २ उपाय । अथखलएकंप्राणवर्द्धनानामुतकृष्टतममेकंबलवर्द्धनानामेकंबूहणानामेकंनन्दनानामेकंहर्षणानामेकमयनानामिति ।तत्राहिंसाप्राणिनांप्राणवर्द्धनालामुस्कृष्टतमम्। वीय्यबलवर्धनानाम् । विद्याबृहणानाम् । इन्द्रियजयोनन्दनानाम् । तत्त्वाववोधोहर्षणानाम् । ब्रह्मचर्यमयनानामित्यायुर्वेदविदोमन्यते ॥१३॥ शरीरकी रक्षाके सम्बन्धमें अनेक उपाय होतेहुए भी प्राणोंको बढानेवाला सवमें उत्तम एक उपाय है वलवर्द्धक पदार्थोंमें एक उपाय प्रधान है । बृहणकर्ताओंमें, आनन्द वढानेवालोंमें, हषोत्पादकोंमें, सब प्रकारकी गति वढानेवालोंमें एक एक ‘उपाय सर्वोत्तम और प्रधान कहा है । वह इस प्रकार है-किसी प्रकारकी भी हिंसा -नं करना सबसे उत्तम माण वढानका उपाय है । वीर्यकी रक्षा सबसे बढकर बलवदक उपाय है। विद्या होना सबसे बढकर वृंहण ( पुष्टता) का उपाय हैं ।इन्द्रि