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चरकसंहिता - भा० टी०- 1
योंको अपने वश में रखना सबसे बढकर आनन्द बढानेका उपाय है, । तत्त्वका ज्ञान होना सबसे बढ़कर हर्ष ( प्रसन्नता ) के बढाने का उपाय है। ब्रह्मचर्य पालन करना सब प्रकारकी गति बढानेका उपाय है । आयुर्वेदके जाननेवाले इस प्रकार मानते हैं ॥ १३ ॥
आयुर्वेदवित् के लक्षण | तत्रायुर्वेदविदस्तन्त्रस्थानाध्यायप्रश्नानां पृथक्त्वेनवाक्यशोवाक्यार्थशोऽथावयवशश्चप्रवक्तारोमन्तव्याः ॥ १४ ॥
जिसको इस आयुर्वेद तन्त्र के स्थान, अध्याय, क्रमपूर्वक प्रश्नोंका विभाग, वाक्य, वाक्यार्थ, अर्थावयव अच्छी तरहसे आतेहों अर्थात् इन सबका जाननेवाला हो उसको आयुर्वेदवित् ( आयुर्वेदका जाननेवाला ) कहते हैं ॥ १४ ॥ तंत्रादिशब्दोंकी व्याख्या ।
अत्राहकथंतन्त्रादीनिवाक्यशोवाक्यार्थशोऽवयवशश्चेतिउक्तानिभवन्ति, अत्रोच्यते तन्त्रमार्षकात्स्न्येनयथास्थान मुच्यमानं वाक्यशोभवत्युक्तम् । बुद्धया सम्यगनुप्रविश्यार्थतत्वंवाग्भिर्वाससमास-प्रतिज्ञाहेतूदाहरणोपनयनिगमनयुक्ताभिः त्रिविधशिष्यबुद्धिगम्याभिरुच्यमानंवाक्यार्थशोभवत्युक्तम् । तन्त्रनियतानामर्थदुर्गाणांपुनर्भावनैरुक्तमर्थावयवशोभवत्युक्तम् । तत्रचेत्प्रष्टारः स्युः चतुर्णामृक्सामयजुरथर्ववेदानां कंवेदमुपदिशन्तिआयुर्वेदविदः । किमायुः कस्मादायुर्वेदविदः । किमायुः कस्मादायुर्वेदः किञ्चायमायुर्वेदः शाश्वतोऽशाश्वतइति । कानि चास्याङ्गानिकैश्चायमध्येतव्यः किमर्थञ्चेति ॥ १५ ॥
अब कहते हैं कि तन्त्रादिक वाक्यद्वारा तथा वाक्यार्थ द्वारा एवम् अर्थावयवद्वारा किस तरह जाने जाते हैं और किनको तन्त्रादि कहतेहैं । सो कहाजाता है कि भूत, भविष्यत, वर्त्तमानके जाननेवाले ऋषियोंके बनायेहुए ग्रन्थको तन्त्र कहा जाता है । बहुतसे विषयों के कथन के समुदायको स्थान कहते हैं और वह वेदानुसार कहांहुआ होनेसे वाक्य कहा जाता है । इस प्रकार संपूर्ण तन्त्रको भलेप्रकार जानकर उसके अर्थतत्त्वको प्रतिज्ञा, हेतु, उदाहरण, उपनय, निगमनके साथ उत्तम बुद्धिवाले तथा मध्यम बुद्धिवाले एवम् कनिष्ठ बुद्धिवाले शिष्योंकी बुद्धिको जानकर संक्षेपसे अथवा विस्तार से समझाया जानेवाला उपदेश वाक्यार्थसे कथन करना कहाजाताहै । ग्रंथ में
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