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चरकसंहिता-मा० टी०। . . . सुखायु और दुःखायुके लक्षण । तन्त्रेणतंत्रायुरुक्तंस्वलक्षणतोयथावदिहैवतत्रशारीरमानसाभ्यारोगाभ्यामनभिद्रुतस्यविशेषेण यौवनवतः समर्थानुगतबलवीर्यपौरुषपराक्रमस्यज्ञानविज्ञानेन्द्रियन्द्रियार्थवलसमुदायेवर्तमानस्यपरमार्द्धसाचविविधोपभोगस्यसमृद्धसारम्भस्ययथेष्टविचारणासुखमायुरुच्यतेअसुखमतोविपर्यायेण ॥१७॥
आयुर्वेद शास्त्र करके आयुर्वेद और आयुका कथन किया जाचुकाहै अव सुखायु और असुखायुका लक्षण कहतेहैं । जो मनुष्य शारीरिक और मानसिक व्याधियोंसे दु:खित नहीं है और पूर्णरूपसे युवावस्थावाला है, जिसके शरीरमें भले प्रकार बल,वीर्य,पुरुषार्थ,पराक्रम प्राप्त है और ज्ञान,विज्ञान,इन्द्रिय और इन्द्रियार्थ इन सबके बल समुदायसे सम्पन्न हैं एवम् परम ऋद्धि सम्पन्न सुन्दर शोभायुक्त अनेक प्रकारके उपयोगयुक्त जिसके सब आरम्भ यथोचित समृद्ध हैं तथा वह मनुष्य स्वाधीन तथा सुन्दर विचारयुक्त हो उसके जीवितको सुखायु कहतेहैं । इससे विपरीत असुखायु (दुःखायु) जानना चाहिये ॥ १७ ॥
हिताहितआयुका वर्णन ।। हितैषिणःपुनर्भूतानांपरस्वात्उपरतस्यसत्यवादिनःशमपरस्य . परीक्ष्यकारिणोऽप्रमत्तस्यत्रिवर्गपरस्परेणानुपहतमुपसेवमानस्यपूजार्हसम्पूजकस्यज्ञानविज्ञानोपशमशीलवृद्धस्योपसेविनः सुनियतरागेामदमानवेगस्यसततंविविधप्रदानपरस्यतपोज्ञानप्रशमनित्यस्यअध्यात्मविदस्तत्परस्यलोकमिमञ्चामुञ्चावेक्ष्यमाणस्यस्मृतिमतिमतोहितमायुरुच्यते । अहितमतो . विपर्यायेण ॥ १८॥ जो मनुष्य संपूर्ण प्राणियोंका हित चाहनेवाला, परधनकी इच्छा न रखनेवाला, सत्यवादी, शान्तचित्त, विचारकर करनेवाला,अप्रमत्त, धर्म,अर्थ, काम इन सबको 'परस्पर अनुपहत विधिसे सेवन करनेवाला, पूज्यजन गुरुजन आदिकोंकी सेवा करनेवाला, ज्ञान, विज्ञान और उपशमशील, वृद्धजनोंकी सेवा करनेवाला, राग,
द्वेष, मद और मनके वेगको वशमें रखनेवाला,नित्य प्रति यथाशक्ति दान देनेवाला, । तप, ज्ञान,और इन्द्रियोंका शमन इनका अभ्यास करनेवाला, अध्यात्म विद्यायुक्त,