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सूत्रस्थान-अ०.२९
(३९५ 'विद्वज्जनसन्निपातञ्चाभिसमक्ष्यिप्रतिभयमिवकान्तारमध्वगा:
परिहरन्तिदूरात् ॥९॥ इन उपरोक्त संपूर्ण लक्षणोंसे विपरीत गुणवालेको रोगाभिसर और प्राणनाशक कहनाचाहिये । जो लोग वैद्यका वेश धारण किये, संसारमें कंटकरूप वैद्योंकेसे रूप धारण कियेहुए राजाओंको असावधानीस राज्यके अन्दर फिरते हैं उन धूतोंकी यही पहिचान है कि वह वैद्यका वेश धारण कियहुए अपने मुखसे अपनी बडी वडाई करतेहुए रास्तमें तथा जिस मार्गपर बहुत आदमी फिराकरते हैं उन स्थानों में कर्म लोभसे फिरा करते हैं और किसी मनुष्यको बीमार सुनकर झट उसके पास जा पहुँचते हैं और उसके कानके समीप विना ही पूछे अपने वडेभारी वैद्य होनेके गुण वर्णन करने लगजाते हैं और जो वैद्य पहिले उपाय कर रहाहो उसके दोषोंको वारबार अपने मुखसे.कथन करतेहुए अपनी प्रशंसा करते हैं तथा रोगीके मित्रोंको किसी प्रकारकी सेवा आदिस या अन्य किसी लोभसे प्रसन्न कर अपना बनानेकी इच्छा करतेहैं और अपने आपको निर्लोभ जंचाते हुए रोगीके सम्बन्धियोंसे अपने लेनके विषयमें वडी युक्तिके साथ थोडीसी इच्छा जंचाते हैं। तथा चिकित्सा करतेहुए पाखण्डसे रोगी और औषधीको बारबार देखतेहुए अपनी औष:: धाकी तारीफ करतेहैं और चतुराईपूर्वक अपनी मूर्खताको छिपाते जाते हैं । जब रोग बढने लगताहै तो रोगीको कुपथ्य करनेवाला और अजितात्मा बताकर अपनेको निर्दोष ठहरा अपने अवगुणको छिपाना चाहतेहैं । रोगीकी अवस्था बिगडते. देख उसके मकानको छोड दूसरे स्थानमें चलेजाते हैं । और हमको कहीं अत्यावश्यक कार्य है ऐसा कहकर अन्यस्थानमें चलेजातेहैं । यह दुष्ट साधारण मनुष्योंके समूहमें उन लोगोंको मूर्खसा बनाते हुए अपनी इतनी चतुराई दिखाते हैं
और अधीरके समान ऐसी बातें बनाते हैं कि जिनको सुनकर धीरपुरुषोंका भी, धैर्य जातारहे । जब किसी विद्वानको आते देखते हैं तो मारे भयके दूरसे ही उनको. देखकर स्त्रियोंके आने जानेके रास्तेसे झट इधर उधर छिपजाते हैं ॥ ९॥ .
यश्चैषांकश्चित्सूत्रावयवउपयुक्तस्तंप्रकृतेप्रकृतान्तरेवासततमुदाहरन्तिनचानुयोगमिच्छन्तिअनुयोक्तुंवामृत्योरवचानुयोगादुद्विजन्ते । नचैषामाचार्य:शिष्योवासब्रह्मचारीवैवादिको वाकश्चित्प्रज्ञायते इति ॥ १०॥ यह दुष्ट किसी एकाध वैद्यकके सूत्रके अवयवको अण्टसण्ट याद कररखते हैं उसको सब लोगोंमें बारम्बार उच्चारण करतेहुए अहंकारपूर्वक कहाकरते हैं कि