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सूत्रस्थान-अ० २७. . (३४५) भिलावेके फलोंकी मज्जा अग्निके समान गर्म है तथा उसकी छाल और गुदा विपाकमें मधुर तथा शीतल होताहै । भिलावा विना युक्तिसे खाया त्वचा और मांसमें सूजन प्रगट करता है, दांतोंको गिरादेगहै तथा विषके समान है । यदि युक्तिपूर्वक सेवन कियाजाय तो अमृत के समान रसायन होताहै) इस प्रकार उपयोगी फलोंसे युक्त फलवर्ग नामक यह पञ्चमवर्ग कहागया ॥ १५८.॥ १५९५
__ अथ हरितवर्गः।
अदरख सोंठके गुण। रोचनंदीपनंवृष्यमाकंविश्वभेषजम् । ... वातश्लेष्मविबन्धषुरसस्तस्योपदिश्यते ॥ १६०॥
अदरक और सोंठ रुचिकारक, दीपन और वृष्य है । अदरखका रस-वात और कफके विबंधको फाड देताहै ॥ १६० ॥
जमीरीके गुण । रोचनोदीपनस्तीक्ष्णःसुगन्धिर्मुखबोधनः। .
. जम्बीरःकफवातघ्नःक्रिमिनोभुक्तपाचनः ॥ १६१ ॥ __जंभीरी नींबू-रुचिकारक, दीपन, तीक्ष्ण, सुगंधित, मुखको बोधन करनेवाला, कफ और वात तथा कृमियों को नष्ट करनेवाला और भोजन किये आहारको पचानेवाला होताहै ॥ १६१॥ . . .
मूलीके गुण । बालंदोषहरंवृद्धांत्रिदोषमारुतापहम् ।
स्निग्धसिद्धविशुष्कन्तुमूलकंकफवाताजत् ॥ १६२ ॥ कच्चीमूली-त्रिदोषको नष्ट करती है । पकीहुई मूली-त्रिदोषकारक होती है। चिकनाई युक्त सिद्ध किया मूलीका शाक वातनाशक होताहै । सूखी मूली-वात, कफको हरती है ॥ १६२ ॥
तुलसीके गुण । हिक्काकासविषश्वासपार्श्वशूलविनाशनः।
पित्तकृत्कफवातनःसुरसः पूतिगन्धनुत् ॥ १६३ ॥ तुलसीके पत्र-हिचकी, खांसी, विषविकार, श्वास तथा पार्श्वशूलको नष्ट करते हैं। पित्तकारक, कफ, वातनाशक एवम् दुर्गंधनाशक होते हैं । १९३॥