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सूत्रस्थान-अ० २७. (३७३ ), क्योंकि तीक्ष्ण खट्टेके ऊपरसे मीठा खाना धातुओंमें विकार उत्पन्न करताहै अथवा अन्नका इस प्रकारका अनुपान करना चाहिये जो धातुओंका विरोधी न हो।।३१३ आसव ८४ प्रकारके होतेहैं उनको हम प्रथमही कथनकर आयेहैं ।। ३१४ ॥
जलंपेयमपेयञ्चपरीक्ष्यानुपिबेद्धितम् ॥ ३१५ ॥ जल परीक्षा करके पीने योग्य है या नहीं ऐसा विचारकर पीना चाहिये।।३१५॥
स्निग्धोष्णंमारुतेशस्तपित्तेमधुरशीतलम् ।
कफेऽनुपानरूक्षोष्णंक्षयेमांसरसःपरम् ॥ ३१६ ॥ वायुके रोगमें चिकना और गर्म अनुपान करना चाहिये । पित्तजनित रोग -मधुर और शीतल अनुपान करना चाहिये ।कफजनित रोगमें रूक्ष और गर्म अनुपान करना चाहिये । एवम् सव धातुओंकी क्षीणतामें मांसरसका अनुपान करना चाहिये ।। ३१६ ॥
दूधका अनुपान । उपवासाध्वभारस्त्रीमारुतातपकम्मभिः।
क्लान्तानामनुपानार्थपयःपथ्यंयथामृतम् ॥३१७॥ उपवास, मार्गसे थका, बहुत भाषण किया हुआ, स्त्रीसंभोगके अनन्तर, वायु, धूप तथा अन्य कर्मोंसे थके हुए मनुष्योंको दूधका अनुपान पथ्य और अमृतसमान है ।। ३२७॥
अन्य अनुपान । सुराकशानांपुष्टयर्थमनुपानंप्रशस्यते । कार्यार्थस्थूलदेहानामनुशस्तंसधूदकम् ॥ ३१८ ॥ अल्पानीनामनिद्राणांतन्द्राशो. कसयलमैः । मद्यमांसोचितानाश्चमद्यमेवानुशस्यते ॥३१९॥ कृश मनुष्योंको पुष्टिके लिये सुराका अनुपान उत्तम है । एवम् स्थूल मनुष्योंका
श करनेके लिये शहदयुक्त पानीका अनुपान करना चाहिये ॥३१८॥ मंदाग्निवालोको अनिद्रा, तन्द्रा, शोक, भय तथा क्लान्ति युक्त मनुष्योंको और जो मद्यमांसके सेवन करनेवाले हैं उनको मद्यका अनुपान करना उत्तम है ।। ३१९ ॥
अनुपानके कर्म । अथानुपानकर्मप्रवक्ष्यामि । अनुपानंतर्पयतिप्रीणयतिऊर्जयतिपातिमभिनिवर्तयतिभुक्तमवसादयातिअन्नसङ्घातभिन