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सूत्रस्थान-अ० २५० (३७५ ) क्योंकि जैसे यावन्मात्र संपूण द्रव्य जाने जा नहीं सकते एवम् उन संपूर्ण द्रव्योंको संपूर्ण भाषाओंमें नाम नहीं जानेजाते इसी प्रकार संपूर्ण द्रव्योंका इस आहार विषयमें कथन करना कठिन प्रतीत होताहै क्योंकि देशभेदसे, क्रमभेदसे, संस्कार भेदसे आहारविशेष द्रव्योंकी कल्पना असंख्य प्रकारसे है ॥ ३२४ ॥ ३२५ ॥
चरादिपरीक्षा। चरा शरीरावयवाःस्वभावोधातवःक्रिया ॥ लिङ्गंप्रमाणसंस्कारोमात्राचास्मिन्परीक्ष्यते ॥ ३२६ ॥ चरोऽनूपजलाकाशधन्वाद्योभक्ष्यसंविधौ ॥ जलजानूपजाश्चैवजलानूपचराश्च
ये ॥ ३२७ ॥ गुरुभक्ष्याश्चयेसत्त्वा:सतेगुरुवःस्मृताः । लघु. भक्ष्यास्तुलघवोधन्वजाधवचारिणः ॥ ३२८ ।।
आहारीवषयक प्रायः चर और अचर द्रव्योंका कथन करचुहैं अब यहांपर -चर जातीय अर्थात् आहारमें आनेवाले जीवोंका शरीरके अंग, स्वभाव, धातुयें, लक्षण, प्रमाण, संस्कार और मात्रा भी परीक्षा करने योग्य है सो उनका वर्णन करते हैं । जलचर, अनूपचर, आकाशचर एवम् जंगलमें फिरनेवाले तश जलमें उत्पन्न भये और अनूपदेशके रहनेवाले और जो संपूर्ण जीव गुरुपदार्थोंको भक्षण करनेवाले हैं वे सव संपूर्ण अंगोंमें भारी अर्थात् गुरुपाकी होते हैं । इसी प्रकार हलके पदार्थोंके खानेवाले और जंगलमें उत्पन्न भये तथा जंगलमें फिरनेवाले. जानवर हलके अर्थात् लघुपाकी होते हैं।। ३२६ ॥ ३२७ ॥ ३२८ ॥
शरीरावयवका वर्णन । शरीरावयवाःसस्थिशिरःस्कन्धादयस्तथा। सक्थिमांसाद्गुरुस्कन्धस्ततःक्रोडस्ततश्शिरः ॥ ३२९ ॥ वृषणाचर्ममेद्रश्चनो , णीवृक्कायैकद्गुदम् । मांसाद्गुरुतरंविद्याद्यथास्वंमध्यमस्थिच ॥ ३३०॥
जांघ, मस्तंक, कंधा आदिक जो शरीरके अवयव हैं इनमें जंघाके मांससे कंधेका मांस और कंधेके मांससे छातीका मांस तथा छातीके मांससे मस्तकका मांस और मस्तकके मांससे पैरोंका मांस भारी होता है। दोनों अण्डकोश, चर्म, मेडू (गुह्य. स्थान), वृक्कस्थान, यकृत् एवम् गुदाका मांस प्रथमकी अपेक्षा दूसरे क्रमपूर्वक भारी होतेहै. और अस्थियोंने लगा हुआ मांस इन सबकी अपेक्षा भारी होताहै ॥ ३२९॥ ३३०॥ .