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सूत्रस्थान -म० २७..
पुराण धान्यमें विशेषता |
शुकधान्यंशमीधान्यंसमातीतं प्रशस्यते । पुराणं प्रायशो रुक्षप्रायेणाभिनवगुरु ॥ ३०९ ॥
शूकधान्य और शमीधान्य एकवके पुराने होनेसे हितकारी होते हैं । पुराने धान्य प्रायः रूक्ष होते हैं और नवीन धान्य भारी होते हैं ॥ ३०१ ॥ यद्यदागच्छतिक्षिप्रंत चलघुतरं स्मृतम् ॥ ३०२ ॥
जो धान्य शीघ्र परिपाकको प्राप्त होते हैं वह उतने ही हलके होते हैं ॥ ३०२ ॥ निस्तुपंयुक्तिभृष्टन्तुसूप्यं लघुविपच्यते ॥ ३०३ ॥
तुषहित युक्तिपूर्वक भुनी हुई दाल लघुपाकी होती है ॥ ३०३ ॥
वर्जित मांस ।
(३७१)
स्मृतंकेशातिमेध्यञ्चवृद्धंबालंविषैर्हतम् ।
अगोचरभृतं व्याडमृदितं मां समुत्सृजेत् ॥ ३०४ ॥
अपने आप मरा हुआ, कृश, सडावुता, वृद्ध, वाल, विष आदिसे मराहुआ, अपरोक्ष मराहुआ, व्याघ्र आदिका माराहुआ ऐसे जीवोंका मांस त्यागदेने योग्य 711 302 11
मांसरसका गुण |
अतोऽन्यथाहितंमांसंबृंहणंत्र लवर्द्धनम् । प्रीणनः सर्वभूतानां हृद्योमांसरसः परम् ॥३०५॥ शुष्यतां व्याधियुक्तानां कृशानांक्षीणरेतसाम् ॥ वलवर्णार्थिनाञ्चैवरसंविद्याद्यथामृतम् ॥ ३०६ ॥ इनसे सिवाय प्रायः सम्पूर्ण जीवोंका मांस पुष्टिकारक और बलवर्द्धक होता है। मांसरस - सब मनुष्यों के लिये प्रीणन और हथ होता है तथा सुखेहुए शरीवालों को, अथवा शोषरोगवालोंको, कृश मनुष्योंको, क्षीणवीर्यवालोंको, वल वर्णकी इच्छावालोंको मांसरस अमृतके समान है ॥ ३०२ ॥ ३०६ ॥
सर्वरोगप्रशमनं यथास्वविहितंरसम् । विद्यात्स्वय्र्यंबलकरंवयोबुद्धीन्द्रियायुषाम् ॥ ३०७ ॥ व्यायामनित्याः स्त्रीनित्यामद्येनित्याश्चयेनराः । नित्यंमांसरसाहारानातुराः स्युर्नदुर्बलाः ३०८॥ मांसरस द्रव्यविशेषके संयोग से सिद्ध किया जानेपर संपूर्ण रोगों को नष्ट करता है तथा स्वरकारक, बलवर्द्धक, अवस्थास्थापक, बुद्धिवर्द्धक, इन्द्रियोंका बल तथा
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