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(३७२) चरकसंहिता-भा० टी०। आयुको बढानेवाला है । व्यायाम करनेवाले मनुष्योंको, स्त्री सेवन करनेवालोंकों,. सरापियों को नित्य मांसरसका आहार करना चाहिये । मांसरस सेवन करनेसे रोगग्रस्त मनुष्य भी दुर्बल नहीं होते ॥ ३०७ ॥ ३०८ ॥
वर्जित शाक। क्रिमिवातातपहतंशुष्कंजीर्णमनातवम् । - शानिःस्नेहसिद्धञ्चवज्ययच्चापरिसुतम् ॥ ३०९॥ कोडेका खाया हुआ, वायुका माराहुआ, सूखा, धूपसे जलाहुआ,पुराना, वेमौसम, बिना चिकनाईसे बनाया हुआ, जिस शाकको उबालकर पानी न निकालाहो. अथवा जो साफ न कियागयाहो ऐसा शाक खाने योग्य नहीं होता ॥ ३०९ ॥
वार्जत फल । पुराणमामसंक्लिष्टंक्रिमिव्यालहिमातपैः। -
अदेशाकालजंक्लिन्नयत्स्यात्फलमसाधुतत् ॥ ३१०॥ पुराना, कच्चा, सडाहुआ,कांडे सर्प आदिका खाया हुआ,धूपसे मुझाया हुआ, सदासे माराहुआ, खराब भूमिमें उत्पन्न भया, बे समय उत्पन्न भया, दुर्गंधयुक्त "ऐसे फलको निंदनीय समझ त्याग देवे । अर्थात् कभी न खाये ॥ ३१० ॥
हरितानांयथाशाकंनिर्देशंसाधनाहते ॥ ३११ ॥ सब प्रकारके सब्जियोंको पत्र शाकों के समान संस्कार कर खाना चाहिये परन्तु . इनको उबालकर शाकोंके समान निचोडना नहीं चाहिये ॥ ३११ ॥
मद्याम्बुगोरसादीनांस्वेस्खेवगैविनिश्चयः ॥ ३१२॥ मद्य, जल, दूध आदिकोंके गुणदोष उनके वर्गों में कथन कियेगये हैं ॥३१२ ॥
अनुपानका वर्णन । यदाहारगुणैःपानविपरीतंतदिष्यते । अन्लानुपानंधातनांदृष्टं यन्नविरोधिच ।। ३१३ ॥ आसवानांसमुद्दिष्टाअशीतिश्चतुरुत्तराः॥ ३१४॥ जिस गुणवाला आहार हो उससे विपरीत गुणवाला अनुपान करनाचाहिये अर्थात । आहार उष्णता-प्रधान हो तो अनुपान शीतल होनाचाहिये, शीतल आहार हो तो अनुपान गर्म. होनांचाहिये परन्तु खट्टे पदार्थपरसे.मीठा अनुपान नहीं करना चाहिये.'
१ अन्नानुपानम् इतिपुस्तकान्तरे। .