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चरकसहिता-भा० टी०। सगुडा:सतिलाश्चैवसक्षीरक्षौद्रशर्कराः ।
वृष्यावल्याश्चभक्ष्यास्तुतेपरंगुरुवःस्मृताः॥ २६३॥ गुड, तिल, दूध, शहद, खांड इनसे बने पदार्थ-वीर्यवर्द्धक, वलकारक, एवम् अत्यन्त भारी होते हैं ॥ २६३ ॥
घृतसिद्ध गेहूके पदार्थके गुण । सस्नेहाःस्नेहासिद्धाश्चभक्ष्याविविधलक्षणाः ।
गुरवस्तर्पणावृष्याहृद्यागोधूमिकामताः ॥ २६४ ॥ चिकनाईयुक्त एवम् घृतमें सिद्धकिये हुए गेहूंके आटेके पदार्थ-भारी,दृप्तिकारक, वीर्यवर्दक एवम् हृदयको प्रिय होते हैं ॥ २६४ ॥
संस्काराल्लघवःसन्तिभक्ष्यागोधूमपैष्टिकाः ।
धानापर्पटपूपाद्यास्तानबुद्धानिर्दिशेतथा ॥२६५ ॥ संस्कारविशेषसे गेहूके बने पदार्थ हलके . भी होते हैं । जो धानिये, पापड, पूडे आदिक पदार्थ हैं इन सबको संस्कारविशेषसे हलके और भारी कहना चाहिये ॥ २६५ ॥
पृथुक गुण। पृथुकागुरवोभृष्टान्भक्षयदल्पशस्तुतान् ।
यावाविष्टभ्यजीयन्तिसतुषाभिन्नवर्चसः ॥२६६ ॥ चूडा--भारी होताहै इनको भूनकर थोडा खाना चाहिय । यवके चूड़े--विष्टम्म करके पाचन होते हैं। यदि तुषों सहित हों मलके भेदन करनेवाले होते हैं।२६६।।
यूष गुण । सूप्यान्यविकृताभक्ष्यावातलारूक्षशीतलाः ॥
सकटुस्नेहलवणानल्पशोभक्षयेत्तुतान् ॥ २६७ ॥ दालसे बने हुए यूष रूक्ष, शीतल और वायुकारक होतेहैं इस लिये उनको 'पीपल मिर्च, सोंठ मिलाकर तथा घृतयुक्त कर थोडा खाना चाहिये ॥ २६७ ॥
पांकके गुण। मृदुपाकाश्चयेभक्ष्याःस्थूलाश्चकाठिनाश्चये ॥
गुरवस्तेऽप्यतिक्रान्तपाकाःपुष्टिबलप्रदाः ॥ २६८॥ स्थूल और कठिनद्रव्य जो मृदुपाकी होते हैं वह सब भारी, देरमें पचनेवाले, पुष्टिकारक और बलके देनेवाले होतेहैं ॥ २६८॥