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सूत्रस्थान - अ० २७.
नवनीतके गुण । संग्राहिदीपनंहृद्यं नवनीतनवोद्धृतम् । ग्रहण्यशोविकारघ्नमर्द्दितारुचिनाशनम् ॥ २२४ ॥
ताजा मक्खन-संग्राही, दीपन, हृदयको हितकारी, ग्रहणीरोगनाशक, बवासीरनाशक, अर्दितरोगनाशक एवम् रुचिकारक है ॥ २२४ ॥
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घृतका गुण ।
स्मृतिबुद्धयनिशुक्रजः कफमेदोविवर्द्धनं । वातपित्तविषोन्मादशोषालक्ष्मीज्वरापहम् ॥ २२५ ॥ सर्व स्नेहोत्तमं शीतं मधुरंरसपाकयोः । सहस्रवीर्य्यविधिभिर्वृतं कर्म्मसहस्रकृत् ॥ २२६ ॥
घृत--स्मृति, बुद्धि, अग्नि, वीर्य, ओज, कफ और मेद इनको बढानेवाला है तथा वात, पित्त, विषविकार, उन्माद, शोष, अलक्ष्मी, स्वरभंग इन सबको नह करता है । संपूर्ण स्नेहों में उत्तम है। रस तथा विपाकमें मधुर है घृत सहस्रों द्रव्योंके संयोगसे अलग २ संस्कार किया सहस्र प्रकारके गुणोंको करताहै ॥२२५॥२२६॥
पुराने घृतका गुण | मदापस्मारमूर्च्छायशोषोन्मादगरज्वरान् ॥ योनिकर्णशिरःशूलंघृतं जीर्णमपोहति ॥ २२७ ॥
पुराना घी-मदरोग, मृगी, मूर्च्छा, शोष, उन्माद, गर, ज्वर, योनि, कान तथा शिरके शूल इन सबको दूर करता है ॥ २२७ ॥
सर्पोष्यजाविमहिषीक्षीरवत्स्वानिनिर्द्दिशेत् ॥ पीयूषोमोरटञ्चैवकिलाटाविविधाश्चये ॥ २२८ ॥ दीप्ताग्नीनामनिद्राणां सर्व एतेसुखप्रदाः ॥ गुरवस्तर्पणावृष्याबृंहणाः पवनापहाः ॥ २२९ ॥
महिषी, भेड, बकरी इनके घृत इनके दूधके समान गुणवाले जानने । पीयूष (तत्काल बिआई - गौका दूध ), मोरट ( रबडी ), किलाट ( खोआ ) ये सब बलवान् अग्निवालेको तथा जिनको निद्रा कम आती हो उनको परम सुखके देनेवाले हैं तथा भारी, तृप्तिकारक, वीर्यवर्द्धक, पुष्टकारक एवम् वातनाशक होते ।। २२८ ।। २२९ ॥