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चरकसंहिता-भा० टी०।
तक्रपिण्डिकाके गुण । विषदागुरवोरक्षाग्राहिणस्तऋपिण्डकाः। . गोरसानामयंवोंनवमःपरिकीर्तितः ॥ २३० ॥
इति गोरसवर्गः। तक्रपिंड (पनीर) स्वच्छ, भारी, रूक्ष और ग्राही होताहै । इस प्रकार दूधवर्ग नामक यह नवम वर्म समाप्त हुआ ॥ २६०॥
अथेक्षुवर्गः ।
ईखके रसका गुण । वृष्य शीतःस्थिरःस्निग्धोबृंहणोमधुरोरसः।
श्लेष्मलोभक्षितस्येक्षोर्यान्त्रिकस्तुविदह्यते ॥ २३१॥ दांतोंसे चूसा हुआ ईखका रस-वीर्यवर्धक, शीतल, दस्तावर, स्निग्ध, पुष्टिकारक, मधुर और कफकारक होताहै । कोल्हूसे निकाला हुभा ईखका रस-विदग्धपाकी होता है । तथा उपरोक्त संपूर्ण गुणयुक्त भी होताहै ॥ २३१ ॥
पौंडा-गन्ना तथा गुडके गुण।। शैत्यात्प्रसादान्माधुर्यात्पौड्काद्वंशकोवरः।
प्रभूतक्रिमिमजासृङ्मेदोमांसकरोगुडः ॥२३२ ॥ पौंडा-शीतल, स्वच्छ और मीठा होता है । वंशक ईख-गुणमें इससे अधिक है। गुड-कृमिकारक, मज्जा, रुधिर, मेद,मांस इनको करनेवाला होताहै ॥२३२॥
क्षुद्रोगुडश्चतुर्भागस्त्रिभागा शोषितः ।
रसोगुरुर्यथापूर्वधौतस्वल्पमलोगुडः ॥ २३३ ॥ गुड पकाते समय जिसमें चारभाग रस हो उस गुडसे जिसमें तीन भाग रस बाकी रहगया वह गुड उससे दो भाग बाकी रहनेवाला तथा जिसमें आधाभाग रस गया हो यह क्रमपूर्वक पहिलेसे दूसरे भारी होतेहैं । शुद्ध किया गुड अल्प मलकारक होताहै ॥ २३३ ॥
मत्स्याण्डिकादिके गुण । ततोमत्स्यण्डिकाखण्डशर्कराविमलाःपरम् । यथायथैषांवैमल्यंभवेच्छैत्यंतथातथा ॥ २३४॥ .