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चरकसंहिता भा० टी० ।
मट्टी तथा कीट, सर्प, और मूषक आदियों के मल इनसे दूषित होने के कारण बरसाती नदियोंका जल सब दोषोंको कुपित करनेवाला होता है ॥ २०७ ॥ कूपादि जलके गुण | वापीकूपतडागोत्थसरःप्रस्रवणादिषु ।
आनूपशैलधन्वानां गुणदोषैर्विभावयेत् ॥ २०८ ॥
बावडी, कूप, तालाब, सूहा, निर्झर और सरोवर आदिकोंका नल - अनूप शैल और जांगल देशके गुणों के समान जानना । अर्थात् जिस देशमें जो बावडी आदिक होंगे वह उसके अनुसार होंगे ॥ २०८ ॥
वर्जित जल । पिच्छिलंक्रिमिलाक्कुन्नं पर्णशैवालकर्द्दमैः ।
विवर्णविरससान्द्रदुर्गन्धिनहितंजलम् ॥ २०९ ॥
जो जल - गाढा, कृमियुक्त, क्लिन्न, पत्र और सिवार तथा कीचडयुक्त, रस और वर्णसे राहत, सान्द्र, आर दुर्गंधित हो उसका कभी सेवन नहीं करना चाहिये२०९ विस्रंत्रिदोषलवणमम्बुयद्वरुणालयम् ।
इत्यम्बुवर्गःप्रोक्तोऽयमष्टमः सुविनिश्चितः ॥ २१० ॥ इति अम्बुवर्गः ।
समुद्रका जल - विस्त्रगंधयुक्त, त्रिदोषकारक, लवणयुक्त होता है । इस प्रकार जल वर्गनामक यह अष्टम वर्ग वर्णन किया गया ॥ २१० ॥
इति जलवर्गः ॥
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अथ दुग्धवर्गः । गोदुग्धके गुण 1.
स्वादुशीतं मृदुस्निग्धं वहलं श्लक्ष्णापिच्छिलम् । गुरुमन्दंप्रसन्न - ञ्चगव्यं दशगुणंपयः ॥ २१९ ॥ तदेवंगुणमेवौजः सामान्याद
भिवर्द्धयेत् । प्रवरंजीवनीयानां क्षीर मुक्त रसायनम् ॥ २१२ ॥
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गौका दूध-स्वादु, शीतल, मृदु, स्निग्ध, घन, श्लक्ष्ण, पिच्छिल, गुरु, मंद, पवित्र इन १० गुणोंवाला होता है तथा इन गुणोंसे संपन्न होनेसे और ओजधातुके सात्म्य होनेसे ओजको बढानेवाला, श्रेष्ठ, जीवनदायक ! और रसायन होता है २११॥२१२॥