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सूत्रस्थान - अ० २७.
अथजलवर्गः ॥
जलमेकविधंसर्वपतत्यैन्द्रंनभस्तलात् ॥ तत्पतत्पतितञ्चैव देशकालावपेक्षते ॥ १९० ॥
वर्षा का जल - आकाशसे गिरताहुआ प्रायः सब जगह एकसे गुणवाला होता है • परन्तु आकाशसे पृथिवीमें गिरनेपर देश, कालकी अपेक्षासे भिन्न २ गुणोंवाला हो जाताहै ॥ १९० ॥
(३५१)
खात्पतत्सोमवाय्वकैःस्पृष्टंकालानुवर्त्तिभिः ॥
शीतोष्णस्निग्धरूक्षाद्यैर्यथा सन्नं महीगुणैः ॥ ११९ ॥
आकाशसे गिरता हुआ जल-शीत, उष्ण, कालानुगामी, चन्द्रमा, वायु, सूर्यके सम्पर्क तथा शीत, उष्ण, स्निग्ध, रूक्षादि पृथिवीके गुणोंसे युक्त होजाता है १९१ ॥ दिव्यजलको षद्गुणत्व |
शीतंशुचिशिवंमृष्टं विमलंलघुषड्गुणम् ॥ प्रकृत्यादिव्यमुदकं भ्रष्टं पात्रमपेक्षते ॥ ९९२ ॥
आकाशका जल-स्वभावसे ही शीतल, स्वच्छ, शुभ, शुद्ध, निर्मल, हलका, मधुरादि षड्गुणसंपन्न होता है । पृथ्वीपर गिरजाने से जैसे स्थान में गिरे वैसे गुणवाला होजाता है ॥ ९९२ ॥
पात्रभेदसे: जलभेद |
श्वेतेकषायं भवतिपाण्डुरे चैवतिक्तकम् । कपिलेकटुकंतोयभूषरेलवणान्वितम् । कटुपर्वतविस्रावेमधुरं कृष्णमृत्तिके ॥१९३॥ एतत्षाड्गुण्यमाख्यातं महीस्थस्यजलस्यहि । तथाव्यक्तरसं विद्यादैन्द्रकारंहिमञ्चतत् ॥ १९४ ॥
वह अन्तरिक्ष से गिरा जल, श्वेत भूमिमें गिरनेसे कषाय होता है । पांडुरभूमिमें ति होता है | कपिलभूमिमें तिक्त होता है । ऊषरभूमिमें लवणान्वित होता है । पर्वगिराहुआ कटु होता है, काली भूमिमें मधुर होता है ॥ ९९३ ॥ इस प्रकार पृथ्वी में गिरे हुए जलके यह ६ गुण कहे हैं । आकाशसे गिराहुआ जल -- अव्यक्त रस, शीतल तथा उत्तम गुणकारी होता है | आकाशके. जलको ऐन्द्रजल कहते हैं ॥ १९४ ॥