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चरकसंहिता - भा० टी० ।
लवाका मांस - कषाय, मधुर, हलका, अग्निवर्द्धक होता है तथा सन्निपातको शान्त करता है एवम् विपाकमें कटु होता है ॥ ६८ ॥ कबूतरोंके मांसका गुण ।
कषायमधुराः शीतारक्तपित्तनिबर्हणाः । विपाके मधुराश्चैवकपोतागहवासिनः ॥ ६९ ॥ तेभ्योलघुतराः किञ्चित्कपोतावनवासिनः । शक्तिाः संग्राहिणश्चैवस्वल्पयूषाश्चतेमताः ॥ ७० ॥
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घर में रहनेवाले कबूतरका मांस - कषाय, मधुर, शीतल, रक्तपित्तनाशक तथा वनके रहनेवाले कबूतरों का मांस घर के कबूतरों की अपेक्षा हलका है, विपाकमें मधुर
हैं, शीतल है, संग्राही है, थोडा यूषवाला है ॥ ६९ ॥ ७० ॥
शुकमांस के गुण | शुकमांसं कषायाम्लविपाकेरूक्षशीतलम् । शोषकासक्षय हितसंग्राहिलघुदीपनम् ॥ ७१ ॥
तोतेका मांस--कसैला, विपाकमें अम्ल, रूक्ष तथा शीतल है । शोष, खांसी, क्षयमें अच्छा है, संग्राही, हल्का और अग्निवर्धक है ॥ ७१ ॥
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खरगोश के मांसका गुण ।
कषायविशदोरूक्षःशीतःपाकेकटुर्लघुः ।
शशः स्वादुः प्रशस्तश्चसन्निपातेऽनिलावरे ॥ ७२ ॥ खरगोशका मांस - कसैला, विषद, रूक्ष, शतिल, पाकमें कटु, हलका और मधुर होता है । इसका मांसरस, हीनवात सन्निपातमें हितकर होता है ॥ ७२ ॥ चिडियाके मांस के गुण ।
चटकामधुराः स्निग्धाबलशुक्रविवर्द्धनाः ।
सन्निपातप्रशमनाः शमनामारुतस्यच ॥ ७३ ॥
चिडियाका मांस मधुर, चिकना, बलवर्द्धक, शुक्रजनक, सन्निपातनाशक तथा वायुको शान्त करनेवाला होता है ॥ ७३ ॥
गदिडके मांस के गुण | मधुराः कटुकाः पाकेत्रिदोषशमनाः शिवाः । लघवोबद्धविपसूत्राः शीताश्चैणाः प्रकीर्त्तिताः ॥ ७४ ॥
गदिडका मांस-मधुर, पाकमें कटु और त्रिदोषको शान्त करनेवाला होता है !. काले हरिणका मांस हलका, मल, मूत्र विबंधक और शीतल होता है ॥ ७४ ॥