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सूत्रस्थान-अ० २७... (३३७). कुमुद और उत्पलकी नाल और इनके फूल, फल शीतल, मधुर, कषाय तथा कफ वातको कुपित करनेवाले होते हैं ॥ ११२ ॥
‘कषायमीषाविष्टम्भिरक्तपित्तहरंस्मृतम्।
पौष्करन्तुभवेदीजमधुररसपाकयोः॥ ११३ ॥ पुष्करनामक कमलके बीज और फूल तथा नाल--विष्टम्भकर्ता, रक्तपित्तनाशक, रस तथा विपाकमें मधुर होते हैं ॥ ११३ ॥ . . • . बल्यःशीतोगुरुःस्निग्धस्तर्पणोबृंहणात्मकः। . . .
वातपित्तहर:स्वादुर्वृष्योमुजातकःस्मृतः॥ ११४ ॥" मुंजातक बलकारक, शीतल, गुरु,स्निग्ध, व्रहण,तर्पण, वातपित्तनाशक, स्वादु और वीर्यवर्द्धक होताहै ॥ ११४ ॥
. . विदारीकन्दके गुण जीवनोश्रृंहणोवृष्यःकण्ठयःशस्तोरसायने विदारीकन्दोबल्यश्वमूत्रलःस्वादुशीतलः । अम्लीकायाःस्मृतःकन्दोग्रहण्यशोंहितालघुः॥. ११५॥नात्युष्णःकफ़वांतनोग्राहीशस्तोमदात्यय। त्रिदोषंबद्धविण्मू–सार्षपशाकमुच्यते ॥ ११६ ॥ विदारीकंद जीवन, वृंहण,वीर्यवर्द्धक,स्वरकारक और रसायन में श्रेष्ठ, बलकारक, मुत्र लानेवाला, मधुर, शीतल, अम्लीका कन्द-ग्रहणों और अर्शमें हितकारी है, हल्का है, अधिक गर्म नहीं है, कफवातको हरताहै, संग्राही है, मदात्ययरोगमें. हितकारक है। सरसोंका शाक-तीनों दोषोंको कुपित करनेवाला,मलमूत्रको बांधः नेवाला होता है ॥ ११५ ॥ ११६.॥ .
तद्वत्पिण्डालुकविद्यात्कन्दत्वाच्चमुखप्रियमासर्पच्छत्रकवर्ध्यास्तुबह्वयोन्यच्छत्रजातयः ॥ ११७ ॥ शीता पीनसकय॑श्चमधुरागुऱ्याएवच । चतुर्थःशाकवोऽयंपत्रकन्दफलाश्रयः॥ ११८ ॥
इतिशाकवर्गः। पिंडआलूका शाक भी सरसोंके समान गुणवाला है. परंतु खानेमें इसका कंद मुखको प्रिय मालुम होताहै । सर्पछत्रकके सिवाय अन्य सब प्रकारके छत्रजाति. (बरसातमें लकड़ी तथा जमीनपर उत्पन्न होते हैं) शीतल, प्रतिश्याय कर्ता,मधुर तथा भारी होते हैं । इस प्रकार शाकवंर्गनामक पत्र, कन्द, फल. शांकाश्रित यह . चौथा वर्ग समाप्त हुआ ॥ ११७ ॥ ११ ॥