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चरकसंहिता-भा० टी०। शुरु, उष्ण, स्निग्ध, मधुर, बलवर्द्धक, पुष्टिजनक, वीर्यवर्द्धक, परमवातनाशक, कफपित्तवर्द्धक होताहै।व्यायाम करनेवाले औरदप्तिाग्नि मनुष्योंको हितकारक है ॥ ५५ ॥ १६ ॥
प्रसहानांविशेषेणमांसमांसाशिनांभिषक् । जीपांशोंग्रहणी____ दोषशोषार्तानांप्रयोजयेत् ॥ २७॥
वैद्यको उचित है कि पुरानी बवासीर और संग्रहणी तथा शोषसे पीडित मनु'ग्याको प्रसहजीवोंका मांस उपयोग करे ॥ ५७ ॥
लावाद्योवैष्किरोवर्ग:प्रतुदाजागालामृगाः । लघवःशीतमधुराः । सकषायाहितानृणाम् ॥ ६८ ॥ पित्तोत्तरेवातमध्येसन्निपाते कफानुगे । विष्किरावर्त्तकाद्यास्तुप्रसहाल्पान्तरागुणैः ॥१९॥
लवासे लेकर विष्किरवर्ग तथा प्रतुद और जांगल जीवोंका मांस,हलका,शीतल, मधुर, कषाय होताहै । इन जीवोंके मांसका यूष पित्तप्रधान, वातमध्य, कफहीन सन्निपातम प्रयोग करना चाहिये । वर्तकसे आदि लेकर विष्किरपक्षियोंका मांस प्रसह जातियोंके पक्षियोंसे किंचित् अल्पगुणवाला होता है ।। ५८॥१९॥
बकरेके मांसका गुण ।। नातिशीतगुरुस्निग्धंमांसमाजमदोषलम् ।।
शरीरधातुसामान्यादनभिष्यन्दिबृहणम् ॥६०॥ बकरेका मांस न तो अधिक शीतल न अधिक भारी एवम् न अधिक स्निग्ध होता है अतएव दोषोंको कुपित नहीं करता । मनुष्योंके शरीर और धातुके अनुकूल होनेसे अनभिष्यन्दी तथा पुष्टकारी होता है ।। ६०॥
भेडेआदिके मांसके गुण। मांसंमधुरशीतत्वाद्गुरुवहणमाविकम् ।योनावजाविकेमिश्रेगोचरत्वादनिश्चिते ॥ ६१ ॥ सामान्येनोपदिष्टानांमांसानांस्वगुणैःपृथक् । केषाञ्चिद्गुणवैशेष्याद्विशेषउपदेक्ष्यते ॥ ६२ ॥ भेडका मांस मधुर शीतल होनेसे भारी तथा बृहण है । बकरा और मेढा यह देखनेमें मिलेजुलेसे होतेहैं और ग्राम्य तथा वन्य भेदसे कई प्रकारके होतेहैं। इस लिये इनके गुणोंको उपरोक्त भेदसे अलग अलग जानना किसी २ जीवोंके मांसमें गुण विशेष होनेसे विशेषरूपसे वर्णन करते हैं. ॥६१ ॥ ६२॥