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. सूत्रस्थान अ० २६.
(३०३) एवमेतेषड्रसाःपृथक्त्वेनवामात्रशःसम्यगुपयुज्यमानांउपकारकराअध्यात्मलोकस्यापकारकराःपुनरुतोऽन्यथोपयुज्यमानांस्तानविद्वानुपकारार्थमेवमात्रशःसम्यगुपयोजयेदिति ॥७० ॥ इस प्रकार यह छारस पृथक् २ यथोचित मात्रासे उचित रीतिपर सेवन कियेहुए शरीरका उपकार करतेहैं । नहीं तो विकारोंको उत्पन्न करनेवाले होतेहैं अतएव विद्वान् मनुष्य इस लोक और परलोकके हितकी इच्छा करता हुआ रसोंको विधिवत् उचित मात्रासे सेवन करे ॥ ७॥
द्रव्योंके वीर्यका वर्णन । भवन्तिचात्र । शीतवीर्येणयद्व्यंमधुररसपाकयोः। तयोरम्लंयदुष्णचयच्चोष्णकटुकंतयोः॥ ७१॥
अव यहां पर कहा जाताहै कि उष्ण और शीत भेदसे द्रव्योंके २ प्रकारके वीर्य होतेहैं। जो द्रव्य रस और विपाकमें मधुर हो वह शीतवीर्य होताहै एवम् जिस । ट्रॅव्यका रस और विपाक दोनों अम्ल हों वह उष्णवीर्य होताहै एवम् जिस द्रव्यका 'त और विपाक कटु हो वह भी उष्णवीर्य होताहै ॥ ७१ ॥
तेषांरसोपदेशेननिर्देश्योगुणसंग्रहः ।
वीर्य्यतोविपरीतानांपाकतश्चोपदेक्ष्यते ॥ ७२॥ • " इस प्रकार द्रव्योंके रसके उपदेशसे रसोंके गुणका संग्रह किया गयाहै । अब वीर्य तथा पाकसे विपरीत नियमोंका कथन करते हैं । ७२ ॥
यथापयोयथासर्पिर्यथावाचव्यचित्रको। एवमादीनिचान्यानि निर्दिशेद्रसतोभिषक् ॥ ७३ ॥ मधुरंकिश्चिदुष्णंस्यात्कषायं तिक्तमेव च । यथामहत्पञ्चमूलंयथाचानुपमामिषम् ॥ ७॥
वैद्यको दूध, घृत, चव्य, चित्रक आदि द्रव्योंका रसानुसार वीर्य और विपाक जानना चाहिये । कोई २ मधुर द्रव्यं तथा कोई कषाय द्रव्य भी उष्णवीर्य होतेहैं। जैसे-वृहत्पंचमूलका क्वाथ तिक्त होनेपर भी उष्णवीर्य है । और अनूपसंचारी जीवोंका मांस मधुर होनेपर भी उष्णवीर्य होता है ॥ ७३ ॥ ७४ ॥ - लवणसैन्धवंनोष्णसम्ललामलकंतथा। ..
अर्कागुरुगुडूचीनांतिक्तानामुष्णमुच्यते ॥ ७५॥ ऐसे ही सेंधानमक लवणरस होनेपर भी और आमला अम्लरस होनेपरः भी