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सूत्रस्थान - अ० २७.
यवकादिका वर्णन |
भवकाहायनाः पांशुवाप्योनैषधकादयः । शालीनांशालयः कुर्वन्त्यनुकारंगुणागुणैः ॥ ११ ॥
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यवकधान्य, हायनधान्य, पांशुधान्य, तालाबके धान्य, नैषधकधान्य, यह भी सब चावलोंकी जाति तथा गुणागुणकी अपेक्षासे उत्तरोत्तर हीनगुण जाननें चाहिये ॥ ११ ॥
साठीचावलों के गुण | शीतः स्निग्धो गुरुः स्वादुत्रिदोषघ्नः स्थिरात्मकः । षष्टिकः प्रवरोगौरःकृष्णगौरस्ततोऽनुच ॥ १२ ॥
षष्टिकधान्य- शीतल, चिकने, भारी, मधुर एवम् त्रिदोषनाशक, शररिको स्थिर करनेवाले होतेहैं । इनमें भी श्वेतवर्णके षष्टिक चावल उत्तम और कृष्णवर्णकेहीनगुण होते हैं ॥ १२ ॥
वरक आदिधान्य | वरकोद्दालकौ चीनशारदोज्ज्वलदर्दुराः ।
गंधलाः कुरुविन्दाश्चषष्टिकाल्पान्तरागुणैः ॥ १३ ॥
वरकधान्य, उद्दालक, चीना, शारद, उज्ज्वल, दर्दुर, गंधळ, कुविन्द आदिकधान्य षाष्टिक चावलों की अपेक्षा किंचित् हीनगुण होते हैं ॥ १३ ॥
व्रीहि और पाटलके गुण । मधुरश्चाम्लपाकश्च त्रीहिः पित्तकरो गुरुः । बहुमूत्रपुरीषोष्मात्रिदोषस्त्वेवपाटलः ॥ १४ ॥
व्रीहिधान्य- मधुर हैं, पाकमें अम्ल हैं, पित्तकारक तथा भारी होते हैं । पाटलधान्य -+अधिक मूत्र लानेवाले तथा मलको बढानेवाले एवम् गर्मी प्रकट करनेवाले तथा त्रिदोषको कुपित करनेवाले हैं ॥ १४ ॥
कोरदूष और श्यामाकके गुण । सकोरदूषःश्यामाकःकषायमधुरोलघुः ।
वातलः कफपित्तघ्नः शीतसंग्राहिशोषणः ॥ १५ ॥
कोद्रव और श्यामाक धान्य- कसैले, मधुर, हलके, वातकारक, कफपित्तनाशक 2 शीतल; संग्राही तथा शोषण करनेवाले हैं ॥ १५ ॥
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