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सूत्रस्थान-अ०.२७.. (३१९) इंधन स्वरूप है एवम् मनुष्योंके प्राणोंका धारण करनेका हेतु है। उचित रीति ‘पर सेवन किया हुआ अन्नपान धातुओंको बलवान् करताहै तथा वर्णकारक है ।
इन्द्रियोंको प्रसन्न करताहै और अनुचित रीतिपर सेवन किया हुआ हानिकारक - होताहै ॥१॥
तस्माद्धिताहितावबोधनार्थमन्नपानविधिमखिलेनोपदेश्यामोऽनिवेश ॥२॥ हे अग्निवेश ! अब हम अन्न पानका हित और अहित ज्ञान होनेके लिये संपूर्ण अन्नपान विधिका वर्णन करतहैं ॥२॥
: अन्नपानादिके स्वाभाविक कर्म । तत्स्वभावादुदकंक्लेदयति, लवणविष्यन्दयति, क्षारस्पाचयति, मधुसन्दधाति, सर्पिःस्नेहयति, क्षीरंजीवयति, मांसंबंयति, रसःप्रीणथति, सुराजर्जरीकरोति, शीधुअवधमयति, द्राक्षा. रसोदीपयति, फाणितमाचिनोति, दधिशोफंजनयति, पिण्याकशाकंग्लपयति, प्रभूतान्तर्मलोमाषसूपः, दृष्टिशुकन्नःक्षारः, प्रायःपित्तलमम्लमन्यत्रमधुनःपुराणाञ्चशालियवगोधूमान्,प्रायःसर्वतिक्तंवातलमवृष्यश्चान्यत्रवेत्राग्रपटोलात्, प्रायःकटुकं
चातलमवृष्यश्चान्यत्रपिप्पलीविश्वभेषजात् ॥ ३॥ । सो उस अन्नपानमें जल स्वभावसे ही क्लेदकारक होताहै । लवण विष्यंदकारक होताहै । क्षार पाचनकर्ता होताहै । शहद व्रणसंधानकारक होताहै । घृत नेहन है, दूध जीवन है । मांस बृहण है । रस प्रीणन है, मद्य जीर्णकारी है। सीधु अवधमनकारी है। दाख दीपनकर्ता है। फाणित दोषोंका संचय करताहै, । दही सूजन करता है । पिण्याक तथा शाक ग्लानिकारक होताहै । उडदोंका जूस मलको वढानेवाला है । क्षार दृष्टि तथा वीर्यका नाश करतीहै । खटाई पित्तको उत्पन्न करतीहै। शहद, पुराने शालिचावल, यव और गेहूके सिवाय सब प्रकारके मीठे द्रव्य कफोत्पादक होतेहैं । इसी प्रकार बेतकी कोंपल और पटोलके सिवाय सब कडुए द्रव्य वायुको बढानेवाले होतहैं । पीपल और सोंठके सिवाय सब प्रकारके चरपरे द्रव्य वीर्यनाशक, कृशकर्ता एवम् वातल होतेहैं ॥ ३॥ . ..