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(३२४) चरकसंहिता-भा० टी०।
सकषायाविरूक्षणाः ॥ २७ ॥ पित्तश्लेष्मणिशस्यन्तेसूपेष्वालेपनेषुच । तेषांमसूरःसंग्राहीकषायोवातलःपरम् ॥ २८॥ चना, मसुरी, दोनों प्रकारके मटर-यह लघु, शीतल, मधुर, कषाय, रूक्ष एवम् पित्तकफके विकारोंमें इनका यूष और आलेपन उत्तम कहाजाताहै । इनमें मसूरी संग्राही और कषाय तथा वातल होती है ॥ २७॥ २८ ॥
तिलके गुण ।। स्निग्धोष्णमधुरस्तीक्ष्णःकषायःकटुकस्तिलः। . .
त्वच्य केश्यश्चबल्यश्चवातनःकफपित्तकृत् ॥ २९ ॥ तिल-चिकने, उष्ण, मधुर, तीक्ष्ण, कषाय, कटु, त्वचाको सुन्दर बनानेवाले, केशोंको बढानेवाले,बलकारक,वातनाशक तथा कफपित्तको उत्पन्न करनेवाले हैं॥२९॥
शिम्बीके गुण। गुव्योऽथमधुरा शीतावलनारूक्षणात्मिकाः । सस्नेहाबलिभि. भोज्याविविधाशिम्बिजातयः ॥ ३०॥ शिम्बीरूक्षाकषाया च कोष्ठेवातप्रकोपनी ॥ न च वृष्या नचक्षुष्या विष्टभ्य च विपच्यते ॥३१॥ सब प्रकारकी शिम्बी (सेम)-भारी, मधुर,शीतल, बलन्न, रूक्षस्वभाववाली, स्नेहयुक्त, बलवान् पुरुषोंके खानेयोग्य होती है॥३०॥ सेम रूक्ष, कषाय,कोष्ठ में वायुको कुपित करनेवाली, शरीरको दुर्वल करनेवाली, विष्टम्भकारक, दुर्जर तथा. नेत्रोंकी हितकारी नहीं है ॥ ३१॥
अरहर आदके गुण । आढकीकफपित्तन्नीवातलाकफवातनुत् । अवल्गुजःसैडगजो निष्पावावातपित्तलाः ॥ ३२॥ कांकाण्डोलात्मगुप्तानांमाषवत्फलमादिशेत् । द्वितीयोऽयंशमीधान्यवर्ग:प्रोक्तोमहर्षिणा॥३३॥
. इतिशमीधान्यवर्गः। अरहर कफ और पित्तको नष्ट करनेवाली और वातकारक होती है। बावचीके बीज-वात और कफको नाश करते हैं । मनवाड (चक्रमर्द )के बीजमें भी यही गुण है । निष्पाव (सेमविशेष) वातपित्तको करनेवाला है। कोलासम्बी और कोंचके बीजोंमें भी उडदोंके समान गुण जानना । इस प्रकार, महार्ष आत्रेयजीने यह शमीधान्यवर्गनामक दूसरा वर्ग कथन किया ॥ ३२ ॥ ३३ ॥ १ कफवातनुदित्यवगुजेडगजयोजिस्य गुणः ।