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(३२०) चरकसंहिता-भा० टी। परमतोवर्गसंग्रहेणाहारद्रव्याण्यनुव्याख्यास्यामः ॥४॥ अब हम आगे वर्गसंग्रहपूर्वक आहारद्रव्योंकी व्याख्या करतेहैं ॥ ४॥
वगाके नाम । शूकधान्यशमीधान्यमांसशाकफलाश्रयान् । वर्गान्हारतमद्याम्बुगोरसेक्षुविकारिकान् ॥५॥ दशौचपरौवर्गीकृतान्नाहाश्योगिनाम् । रसवीर्यविपाकैश्चप्रभावैश्चोपदेक्ष्यते॥६॥ जैसे शूकधान्यवर्ग, शमीधान्यवर्ग, मांसवर्ग, शाकवर्ग, फलवर्ग, हरितवर्ग, मद्य. वर्ग, जलवर्ग, गोरसवर्ग, इक्षुवर्ग यह अलग अलग दश वर्ग तथा कृतान्नवर्ग, तैलवर्ग और शुण्ठ्यादिवर्ग यह सब आहारके उपयोगी होनेसे रस, वीर्य, विपाक तथा प्रभावोंसहित वर्णन करतेहैं ॥५॥६॥
- अथ शूकधान्यवर्गः। ... .. रक्तशालिमहाशालि कलमःशकुनाहृतः। चूर्णकोदीर्घशूकश्च गौरःपाण्डुकलांगुलौ ॥ ७ ॥ सुगन्धिकालोहवाला:शालिवाख्या:प्रमोदकाः। पतङ्गास्तपनीयाश्चयेचान्येशालयःशुभाः॥ ॥८॥ शीतारसेविपाकेचमधुराःस्वल्पमारुताः । बद्धाल्पवर्च
सास्निग्धावृहणाः शुक्रमूत्रलाः ॥९॥ रक्तशालि, महाशालि, कलमशालि, शकुनाहृत, चूर्णक, दीर्घशूक, गौर, पाण्डुक, कांगुल, सुगंधिक, लोहवाल, शालिका, शालिव, प्रमोदक, तपनीय, पतंग इनके सिवाय और भी जो उत्तम २ चावलोंकी जातिये हैं वह सव शीतवीर्य, रस और पाकमें मधुर किंचित्वातकारक, मलको बांधनेवाले, अल्पमलकारक, चिकने, बृंहण, वीर्य तथा मूत्रको बढानेवाले होतेहैं । प्रायः यह उत्तम जातिके चावलोंके गुण हैं ॥ ७॥ ८ ॥९॥ .
शालिधान्योंके . । रक्तशालिवरस्तेषांतृष्णान्नस्त्रिमलापहः।
महांस्तस्यानुकलमस्तस्याप्यनुततःपरे ॥१०॥ लालरंगके शालिचावल इनमें श्रेष्ठमानेगयेहैं तथा तृषा और त्रिदोषको नष्ट करतेहैं। रक्तशाल चावलोंकी अपेक्षा मोटे शालिचावल और मोटे शालिचावलोंकी अपेक्षा कलमचावल हीनगुण होते हैं । इसी प्रकार पहिलेसे दूसरे हीनगुण जानने चाहिये॥१०॥