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________________ सूत्रस्थान - अ० २७. यवकादिका वर्णन | भवकाहायनाः पांशुवाप्योनैषधकादयः । शालीनांशालयः कुर्वन्त्यनुकारंगुणागुणैः ॥ ११ ॥ ( ३२१ ) यवकधान्य, हायनधान्य, पांशुधान्य, तालाबके धान्य, नैषधकधान्य, यह भी सब चावलोंकी जाति तथा गुणागुणकी अपेक्षासे उत्तरोत्तर हीनगुण जाननें चाहिये ॥ ११ ॥ साठीचावलों के गुण | शीतः स्निग्धो गुरुः स्वादुत्रिदोषघ्नः स्थिरात्मकः । षष्टिकः प्रवरोगौरःकृष्णगौरस्ततोऽनुच ॥ १२ ॥ षष्टिकधान्य- शीतल, चिकने, भारी, मधुर एवम् त्रिदोषनाशक, शररिको स्थिर करनेवाले होतेहैं । इनमें भी श्वेतवर्णके षष्टिक चावल उत्तम और कृष्णवर्णकेहीनगुण होते हैं ॥ १२ ॥ वरक आदिधान्य | वरकोद्दालकौ चीनशारदोज्ज्वलदर्दुराः । गंधलाः कुरुविन्दाश्चषष्टिकाल्पान्तरागुणैः ॥ १३ ॥ वरकधान्य, उद्दालक, चीना, शारद, उज्ज्वल, दर्दुर, गंधळ, कुविन्द आदिकधान्य षाष्टिक चावलों की अपेक्षा किंचित् हीनगुण होते हैं ॥ १३ ॥ व्रीहि और पाटलके गुण । मधुरश्चाम्लपाकश्च त्रीहिः पित्तकरो गुरुः । बहुमूत्रपुरीषोष्मात्रिदोषस्त्वेवपाटलः ॥ १४ ॥ व्रीहिधान्य- मधुर हैं, पाकमें अम्ल हैं, पित्तकारक तथा भारी होते हैं । पाटलधान्य -+अधिक मूत्र लानेवाले तथा मलको बढानेवाले एवम् गर्मी प्रकट करनेवाले तथा त्रिदोषको कुपित करनेवाले हैं ॥ १४ ॥ कोरदूष और श्यामाकके गुण । सकोरदूषःश्यामाकःकषायमधुरोलघुः । वातलः कफपित्तघ्नः शीतसंग्राहिशोषणः ॥ १५ ॥ कोद्रव और श्यामाक धान्य- कसैले, मधुर, हलके, वातकारक, कफपित्तनाशक 2 शीतल; संग्राही तथा शोषण करनेवाले हैं ॥ १५ ॥ २१
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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