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(३२२) चरकसंहिता-भा० टी०।
हस्तिश्यामाकनीवारतोयपींगवेधुकाः। प्रशातिकाम्भःश्यामाकलौहित्याणुप्रियङ्गवः ॥ १६ ॥ मुकुन्दझिण्टिगट्टीचरुकावरकास्तथा । शिविरोत्कटजूर्णाह्वःश्यामाकसदृशा गुणैः॥ १७॥ हस्तिश्यामाक, नीवार, तोयपर्णी, गवेधुक, प्रशातिक,जलजश्यामाक, लौहित्यश्यामाक, अनुश्यामाक, कंगुनी, मुकुंद, झिंटी,गर्मुटी,चरुका,वरका,शिविर,उत्कट, जवार इन सबके गुण श्यामाक (सौंक) चावलके समान जानना ॥१६॥१७॥
यवके गुण। । रूक्षःशीतोगुरुःस्वादुःबहुवातशकद्यकः ।
स्थैर्यकत्सकषायस्तुवल्याश्लेष्मविकारनुत् ॥ १८॥ जब-रूखे, शीतल,गुरु,स्वादु, बहुत वायु और बलके करनेवाले, स्थिरताकारक, कषाय, वलकारक एवम् कफविकारनाशक हैं ।। १८ ॥
वेणुयवके गुण। रुक्षःकषायानुरसोमधुर कफपित्तहा । ___ मेदःक्रिमिविषघ्नश्चबल्योवेणुयवोमतः ॥१९॥
वेणुयव रूक्ष, कसैले, मधुर, कफपित्तनाशक, मेदको हरनेवाले, कृमि तथा विषको नाश करनेवाले एवम् वलकारक होतेहैं ॥ १९॥
गेहूंके गुण । सन्धानकद्वातहरोगोधूमः स्वादुशीतलः।
जीवनोबृंहणोवृष्यःस्निग्धःस्थैर्यकरोगुरुः ॥ २०॥ गोधूम (गेहूँ)-संधानकर्ता, वातहर,स्वादु, शीतल, जीवनकर्ता, पुष्टकर्ता,वीर्यवर्द्धक, स्निग्ध, दृढकारक एवम् भारी होताहै ॥ २० ॥
नान्दीमुख और मधूलीके गुण। नान्दीमुखीमधूलीचमधुरस्निग्धशीतले ।इत्ययंशूकधान्यानां पूर्वोवर्ग:समाप्यते ॥ २१॥ इतिशूकधान्यवर्गः।
नान्दीमुखी तथा मधूलिका (गेहूंका भेद )-मधुर स्निग्ध और शीतल होतेहैं । इस प्रकार यह शूकधान्याका वर्ग समाप्त हुआ ॥२१॥ ..