________________
सूत्रस्थान-अ० २७. (३२३) . अथशमीधान्यवर्गः।
मुंगके गुण। कषायमधुरोरुक्षःशीतःपाकेकटुर्लघुः ।
विषदःश्लेष्मपित्तनोमुद्गःसूप्योचमोमतः ॥ २२ ॥ सब प्रकारके शमीधान्योंमें मूगं उत्तम होताहै । मूंग-कषाय, मधुर, रूक्ष शीतल, पाकमें कटु, हलका, विषद और कफपित्तनाशक होताहै ॥ २२ ॥
राजमाषके गुण । रूक्षश्चैवकषायश्चवातलःश्लेष्मपित्तहा।
विष्टम्भीचाप्यवृष्यश्चराजमाषःप्रकीर्तितः ॥२३॥ राजमाष (लोबिया)-खर, रुचिकारक, कफ, शुक्र तथा अम्लपित्त करने. बाला है । एवम् स्वादु, वातकारक, रूक्ष, कषाय, विषद और गुरु होताहै ॥२३॥
उरदके गुण। वृष्यःपरंवातहर:स्निग्धोष्णमधुरोगुरुः।
बल्योबहुमलम्पुंस्त्वंमाषःशीघ्रददातिच ॥ २४ ॥ उडद-वृष्य, वायुनाशक, स्निग्ध, उष्ण, मधुर, गुरु, वल्प, बहुत मलको करनेवाला, शीघ्र पुरुषत्वको देनेवाला होताहै ॥ २४ ॥
कुलथीके गुण । उष्णाःकषायाःपाकेऽम्लाकफशुक्रानिलापहाः।
कुलत्थाग्राहिणःकासहिकाश्वासार्शसांहिताः ॥२५॥ कुल्थी-गर्म, कसैली, पाकमें अम्ल, कफ, शुक्र एवम् वायु इन तीनोंको नष्ट करनेवाली है। संग्राही है तथा कास; हिका, श्वास, एवम् अशरोगमें हितकारक होती है ॥ २५ ॥
मोठके गुण । मधुरामधुरा:पाकग्राहिणोरक्षशीतलाः।
मकुष्ठकाःप्रशस्यन्तेरक्तपित्तज्वरादिषु ॥ २६॥ . मोठ-रस और पाकमें मधुर, ग्राही, रूखा,शीतल, रक्तपिचनाशक एवम् ज्वरादिरोगोंमें हितकारक होता है ॥ २६ ॥
चनाके गुण । चणकाश्चमसूराश्चखण्डिकाःसहरेणकः । लघवशीतमधुराः