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सूत्रस्थान-अ० २६. (३११) भगवान् आत्रेय कहने लगे कि किसी भी मछलीको दूध के साथ नहीं खाना चाहिये और चिलचिम मछलीको कभी भूलकर भी दूधके संयोगसे नहीं खाना चाहिये क्योंकि अभिष्यंदी होनेसे महाव्याधियोंको उत्पन्न करती है तथा शरीरमें आमविषका संचार करतीहै ॥ ११० ॥ ग्राम्यानूपौदकपिशितानिमधुतिलगुडपयोमाषमूलकविसैविरूढधान्यैश्चनैकधाअद्यात् । तन्मूलञ्चबाधिUन्ध्यवेपथुजाडयविकलमूकतामैन्मिण्यमथवासरणमाप्नोति ॥ १११ ॥ ग्राम्य जीवोंका मांस, अनूपसंचारी जीवोंका मांस, जलचर जीवोंका मांस, शहद, तिल, गुड, दूध, उडद, मूली, विस, विरूढधान्य इन सबको मिलाकर एक समय भक्षण नहीं करना चाहिये । ऐसा करनेसे मनुष्य बहरापन, अंधता, कम्प, 'जडता, विकलता, मूकता, मिनमिनता अथवा मृत्युको प्राप्त होताहै ॥ १११ ॥
नपौष्कारोहिणीकंवाशाकंनकपातान्सार्षपतैलभृष्टान्मधुपयोभ्यांसहाभ्यवहरेत् । तन्मूलंहिशोणिताभिष्यन्दधमनीप्रतिचयापस्मारशंखकगलगण्डरोहिणीकानामन्यतमंप्राप्नोत्यथवामरणमिति ॥ ११२ ॥
शहद और दूध के साथ पुष्करपत्र और रोहिणीका साग नहीं खाना चाहिये। सरसोंके तेल में भूना कपोतका मांस दूध और शहदके साथ नहीं खाना चाहिये । ऐसा करनेसे मनुष्यके शरीरमें रक्तका क्लेद, धमनियोंका फडकना, अपस्मार, कनपटीके रोग, गलगण्ड और रोहिणी आदि रोग उत्पन्न होतेहैं अथवा मृत्युको प्राप्त होताहै ।। ११२ ।।
नमूलकलशुनकृष्णगन्धाजंकसुमुखसुरसादीनिभक्षयित्वापयः सेव्यंकुष्ठाबाधभयात् ॥ ११३ ॥ मूली, लहसुन, काली तुलसी, श्वेत तुलसी, वनतुलसी आदि खाकर ऊपरसे दूध पीना कुष्ठरोगको उत्पन्न करताहै । इसलिये ऐसा न करे ॥ ११३ ॥ . .
नजातुशाकंनलिकुचंपकंमधुपयोभ्यांसहोपयोज्यम् । एतद्धि · .. मरणायाथवावलवर्णतेजोवीयोंपरोधायालघुव्याधयेषाण्ड्या.यच ॥ ११४॥ . सम्पूर्ण शाक कटहर तथा शहद इन सबको दूधके साथ मिलाकर नहीं खाना