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चरकसंहिता-भा० टी०। • कोई द्रव्य रससे, कोई वीर्यसे, कोई गुणसे, कोई विपाकसे एवम् कोई प्रभाव अपनी क्रियाको करतेहैं ॥ ९६॥ इन रस आदिकोंकी साम्यतामें विपाकक्रिया करः . नेमें रससे बलवान है ।वर्यि-रस, विपाक इन दोनोंसे बलवान् है एवम् प्रभाव रस, वीर्य, विपाक इन तीनोंसे बलवान् है ।इस प्रकार रसादिकोंमें पहिलेसे दूसरी त्रिया करनेमें गुणकी अधिकता रखताहै।९७ ॥ इस प्रकार विपाक वीर्य और प्रभावका वर्णन किया गया है ॥ ९८॥
मधुरादि ६ रसोंके स्वरूप । षण्णांरसानांविज्ञानमुपदेक्ष्याम्यतःपरम्। स्नेहनप्रीणनाह्लाद-: मार्दवैरुपलभ्यते ॥ ९९ ॥ मुखस्थोमधुरश्चास्यव्याप्नुवल्लिम्प- । तीवच । दन्तहर्षान्मुखस्रावात्स्वेदनान्मुखबोधनात् । विदाहा
च्चास्यकंठस्यप्राश्य वाम्लंरसंवदेत् ॥ १०० ॥ . अब आगे.६ प्रकारके रसोंके विज्ञानका वर्णन करतेहैं । जैसे मधुर रस स्नेहन प्रीणन, आह्लादन, मधुर यह गुण मधुर पदार्थके मुखमें रखते ही प्रतीत होने लगा तेहैं और ऐसा प्रतीत होताहै कि मुखमें मधुर रस, मानो लिपसा गया । इन लक्ष णोंसे मधुर रसका ज्ञान होताहै अम्लरस-मुखमें धारण करते ही दंतहर्ष होना,मुखंस स्राव होना, पसीने आना, मुखका उद्धोधन होना, खाते ही कण्ठमेंसे दाह सा निक: लना इन लक्षणोंसे खट्टे रसका विज्ञान होताहै ॥ ९९ ॥ १०० ॥ . प्रलीयनक्लेदविष्यन्दलाघवंकुरुतेमुखे। .
. यःशीघ्रलवणोज्ञेयःसविदाहान्मुखस्यच ॥१०१॥ जो मुखमें देते ही झट लीन होजाय और गीलापन होकर लार बहनेलगे; शीघ्र लाघवताको करे, तथा मुखमें दाहको करें उसको लवणरस कहतेहैं ॥ १०१ ॥
संवेजयेद्योरसानांनिपातेतुदतीवच ।
विदहन्मुखनासाक्षिसंस्त्रावीसकटुःस्मृतः ॥ १०२ ॥ जो रस मुखमें डालते ही घबराहट सी पैदा करे, जीभमें सूईसी चुभे,मुखमें दाह औरै चरचराहट उत्पन्न करे एवम् मुख, नासिका और नेत्रमेंसे पानीका: स्राव करे उसको कटु रस कहतेहैं ॥ १०२ ॥ .: प्रतिहन्तिनिपातेयोरसनस्वदतेनच ।
सतिक्तोमुखऋषयशोषप्रह्लादकारकः ॥ १०३ ॥ . . .