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सूत्रस्थान-अ० २६...' (२८९) पञ्चरसाइतिकुमाराशराभरद्वाजोभौमोदकाग्नेयवायवीयान्तरिक्षाः॥ १०॥
कुमारशिरा भरद्वाज कहनेलेग कि भौम, औदक, आग्नेय, वायव्य, आन्तरिक्ष इन भेदोंसे ५ पांच प्रकारका रस होताहै ॥ १०॥ .
षडसाइतिवायोंविदोराजर्षिःगुरुलघुशीतोष्णस्निग्धरूक्षाः॥११॥
राजर्षि वार्योंविद कहनेलगे कि, गुरु, लघु, शीत, उष्ण, स्निग्ध,रूक्ष इनभेदोंसे रस ६ छः प्रकारका होताहै ॥ ११ ॥
सप्तरसाइतिनिमिवैदेहोमधुरामललवणकटुकतिक्तकषायक्षाराः॥ १२ ॥ निमि वैदेह कहनेलगे कि रस ७ सात प्रकारके होतेहैं। जैसे-मधुर, अम्ल,लवण, कटु, तिक्त, कषाय, क्षार ॥ १२ ॥
अष्टौरसाइतिबडिशोधामागवोमधुराम्ललवणकटुतिक्तकषाय- :
क्षाराव्यक्ताः॥ १३॥ - वडिश धामार्गवं कहतेहैं कि, मधुर, अम्ल, लवण, तिक्त, कटु, कषाय, क्षार
और व्यक्त इन भेदोंसे रस आठ प्रकारके हैं ॥ १३ ॥ . अपरिसंख्येयारसाइतिकाङ्कायनोबाह्रींकभिषगाश्रयगुणकर्म
संस्कारविशेषाणामपरिमेयत्वात् ॥ १४ ॥ कांकायन कहनेलगे कि रस अपरिसंख्येय हैं क्योंकि आयुर्वेदाश्रित गुण, कर्म संस्कार विशेषोंसे असंख्य कल्पना होसकतीहै ।। १४ ।।
रसविषयक सिद्धान्त । षडेवरसाइत्युवाचभगवानात्रेयःपुनर्वसुःमधुरामललवणकटुतिक्तकषायाः। तेषांषण्णांरसानांयोनिरुदकम् । छेदनोपशमनेद्वेकर्मणी ।तयोमिश्रीभावात्साधारणत्वंस्वाद्वस्वादुताभक्तिः। द्वौहिताहितोप्रभावौ । पञ्चमहाभूतविकारास्त्वाश्रयाः॥१५॥ इस पर भगवान् पुनर्वसु आत्रेयने कहा कि नहीं रस छही प्रकारके होतेहैं । जैसेमधुर, अम्ल, लवण, कटु, तिक्त, कषाय और इन छहों रसोंका कारण जल है। छेदन और उपशमन यह रसोंके दो कर्म हैं। इन सब रसोंके मिलजुलकर साधारणतासे दो स्वाद माने गये हैं। १स्वादु और २ अस्वादु । हितकर और अहितकर