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चरकसंहिता-भा० टी०। यह दो प्रकारके रसोंके प्रभाव होतेहैं । और पांच महाभूतोंके विकार रसके आश्रय माने जाते हैं ॥ १५ ॥
प्रकृतिविकृतिविचारदेशकालवशास्तेपुआश्रयेषुद्रव्यसंज्ञकेषु गुणागुरुलघुशीतोष्णस्निग्धरूक्षाद्याः ॥ १६ ॥ वह आश्रय-प्रकृति, विकृति, विकार, देश, कालके वश माने जाते हैं । फिर वह द्रव्यनामक आश्रय गुरु, लघु, शीत, उष्ण, रूक्ष आदि गुणोंके आश्रयीभूत हैं ॥ १६ ॥
क्षरणाक्षारोनासौरसोद्रव्यंतदनेकरससमुत्पन्नमनेकरसंकटु. कलवणभूयिष्ठमनेकेन्द्रियार्थसमन्वितंकरणाभिानिवृत्तम्॥१७॥ क्षरण होनेसे क्षार कहा जाता है इसालये यह रस नहीं द्रव्य है क्योंकि वह अनेक प्रकारके रसोंसे प्रकट होताहै। इसीलिये अनेक रसयुक्त है किन्तु क्षारमें/कटु और लवण रस अधिकतासे प्रतीत होता है ।क्षार रस अनेक विषयोंसे युक्त और करणसे उत्पन्न होताहै ॥ १७ ॥
अव्यक्तीभावस्तुखलुरसानांप्ररुतावनुरसेअनुरससमन्वितेवा . द्रव्ये ॥ १८॥अपरिसंख्येयत्वंपुनरेतेपामाश्रयादीनभावानां विशेषान्नाश्रीयतेनचतस्मादन्यत्वमुपपद्यते ॥ १९॥ रस अपनी प्रकृतिम तथा अनुरसद्रव्यों में मिलाहुआ रहताहै इससे मालुम नहीं होताह ॥१८॥ इन रमोंके आश्रित असंख्य द्रव्य है इसीलिये आश्रयके भेदसे रस भी असंख्य प्रकारके होसकतेहैं । परन्तु रस रसही रहताहै अन्यत्वको प्राप्त नहीं होता ॥ १९ ॥
परस्परंसंसृष्टभूयिष्टत्वान्नचैपामनिवृत्तिर्गुणप्रकृतीनामपरिसंख्येयत्वंभवति । तस्मान्नसंसृष्टानांरसानांकर्मोपदिशन्ति०- , द्विमन्तः ॥ २०॥ इस प्रकार परस्पर विशेष संयोग होनेसे औरअसंख्य द्रव्याश्रित होनेसे रस असंख्य होता भी गुण, प्रकृति, स्वभावसे ६छः प्रकारके ही होतेहैं । इसलिये बुद्धिमानान गुण, प्रकृति के संयोगसे असंख्य होने पर भी रसांके कर्म अधिक नहीं कहे।॥२०॥
तञ्चबकारणमपेक्षमाणाःपण्णांरसानांपरस्परेणासंसृष्टानांलक्षणपृथकत्वमुपदेक्ष्यामः । अग्रेतवावव्यभंदमभिप्रेत्यकि