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चरकसंहिता-भा० टी०॥ इतिस्वलक्षणेरुक्तागुणाःसर्वेपरादयः।
चिकित्सायेरविदितनयथावत्प्रवर्तते ॥ ५०॥ इस प्रकार परत्व आदिकोंके लक्षणों का वर्णन कियागयाहै इनके यथोचित ज्ञान विना यथार्थ चिकित्सा नहीं होती ॥५०॥
__रसगुणविषयक सिद्धान्त । गुणागुणाश्रयानोक्तास्तस्माद्रसगुणाभिषक् । विद्याद्रव्यगुणान्कर्तुरभिप्रायाःपृथग्विधाः ॥ ५१ ॥ अतश्चप्रतिबुद्धादेशकालान्तराणिच ।
तन्त्रक रभिप्रायानुपायांश्चार्थमादिशेत् ॥ ५२ ॥ गुण गुणांके आश्रित नहीं होते किन्तु द्रव्य गुणके आश्रय कहे गये हैं। इसलिये वैद्य रसके गुणोंको द्रव्यके गुणामें समझे क्योंकि रसका गुण अन्य होनेपर भी द्रव्यमें अन्य गुण पाया जाता है । जैसे-कुल्थीका कपाय रसमें कसैला होनेपर भी वावको उत्पन्न नहीं करता बल्कि नाश करता है ॥५१॥ इसलिये तंत्रकर्ताका अभिप्राय और देश काल आदिकोंको यथोचित विचारकर उपाय आदि करना , चाहिये ॥५२॥
रसोंकी उत्पत्ति । परञ्चातःप्रवक्ष्यन्तेरसानांपड्विभक्तयः ।
पट्पञ्चभूतप्रभवाःसंख्याताश्चयथारसाः॥ ५३॥ अव फिर रसांके ६ विभाग तथा इन छाहोंकी पांच महाभूतोंसे उत्पत्तिको कथन फरतेहै । जैसे-६ प्रकारके रस पांच महाभूतोंसे उत्पन्न हुएहैं ।। ५३ ॥
सौम्याःखल्वापोऽन्तरिक्षप्रभवाःप्रकृतिशीतालव्यश्चअव्यक्तरसाश्चतास्त्वन्तरिक्षाद्मश्यमानाभ्रष्टाश्चपञ्चमहाभूतविकारगुणसमन्विताजङ्गमस्थावराणांभूतानांमूर्तीरभित्रीणयन्तितासमर्तिपुपड्भिर्मूर्च्छन्तिरसाः ॥ ५४॥ अन्तरिक्षका गल प्रायः सौम्य (सोमगुणप्रधान ) होताह इसीलिये स्वभावसे ही गतिल भीर हल्का होताह । यह अव्यक्त रस होवहिं । आकाशसे गिरकर पंचमहामृता गुणाने युक्त होता और जंगम तथा स्थावरीको प्रीणनकर्ता होताहै वहीन्याग ६ प्रकारको रमाको प्रगट करताहे ॥ ५ ॥