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चरकसंहिवा-भा० टी०। और ६ रसांको ही एकत्रित करनेसे १ प्रकार हुआ, एवम् मधुर आदि मुख्य रसोंको अलग २ रखनेसे ६ प्रकार हुए। सबका मिलान करनेसे ६३ प्रकारके रस भेद हुए । इन ६३ तिरेसठ ही प्रकारामें रस और अनुरस ये अंशांश कल्पना करनेसें अत्यंत संख्या वढजाती है॥३०॥३१॥३२॥३३॥३४॥३५॥ ३६ ॥ ३७ ॥ ३८॥ संयोगाःसप्तपञ्चाशकल्पनातुत्रिषष्टिधाारसानांतत्रयोग्यत्वाकल्पितारसचिन्तकैः ॥३९॥ क्वचिदेकोरसःकल्प्यःसंयुक्ताश्वरसाःक्वचित् । दोपौपधादीन्सञ्चिन्त्यभिषजासिद्धिमिच्छता ॥४०॥ द्रव्याणिद्विरसादीनिसंयुक्तांश्चरसान्बुधः । रसानेकैकशश्चैवकल्पयन्तिगदान्प्रति ॥४१॥ इस प्रकार संयोगसे ५७ सत्तावन और कल्पनाविशेषसे ६३ तिरसठ रसाके प्रकार होते हैं । रसचिंतकोनें रसतन्त्रमें इस प्रकार कल्पना की है । सिद्धिकी इच्छा करनेवाले वैद्यको कहीं एक कहीं बहुत रसोंसे युक्त औषधियोंको और दोषोंकों विचारलेना चाहिये । वुद्धिमान् वैद्यको चाहिये कि द्रव्य और द्रव्योंके रस तथा रससंयोग आदि विचारकर रोगामें प्रयोग करें ॥ ३९॥४०॥४१॥
रसविकल्पज्ञ वैद्यकी प्रशंसा। यःस्याद्रसविकल्पज्ञःस्याचदोपविकल्पवित् ।।
नसमुह्योदिकाराणां हेतुलिङ्गोपशान्तिषु ॥ ४२ ॥ जो वैद्य रसांके विकल्पको जानताहै तथा दोषोंकेः विकल्पको भली प्रकार जानताहे वह पैद्य रोगके निदान, लक्षण और उपाय करने में मोहको प्राप्त नहीं होता ॥ १२॥
व्यक्तःशुक्तस्यचादौचरसोद्रव्यस्यलक्ष्यते।
विपर्ययेणानुरसोरसोनास्तिहिसप्तमः॥४३॥ सम्पूर्ण द्रव्याम रस दो प्रकारका देखनेम आताह । १ व्यक्त रस, २ अनुरस । सो वा गीले द्रव्यको मुखमें रखने से जो रस प्रतीत होताहि वह व्यक्तरस होताह परम जो ग्स पीछेसे प्रतीत हो उसको अनुरस कइतह सो वह व्यक्तरस और अनु। सकसीमही हैं। अनुरस उहाँसे अलग कोई सातवां रस नहीं है ॥ ४३ ॥
पगदि १० गुणों के नाम और लक्षण । परापरत्वयुक्तिश्वसंख्यासंयोगएव च । विभागश्चपृथक्त्वञ्चप