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सूत्रस्थान - अ० २६. तेषां षण्णांरसानां सोमगुणातिरेकान्मधुरोरसः, पृथिव्याग्निभूयिष्ठत्वादम्लःसलिलाग्निभूयिष्ठत्वालवणोवाय्वग्निभूयिष्ठत्वात्क"
टुकोवाय्वाकाशातिरेकात्तिक्तःपवन पृथिव्यतिरेकात्कषायः । एवमेषांरसानांषट्त्वमुत्पन्नम् ॥ ५५ ॥
उन छः रसोंमें मधुर रस सोमगुणविशिष्ट होता है। पृथ्वी और तेज गुण विशिष्ट अम्लरस होता है । जल और अग्निगुणविशिष्ट लवण रस होता है । वायु और अग्निगुणविशिष्ट कटु रस होता है । वायु और आकाशगुण विशिष्ट कषाय रस होता है । इस प्रकार पंचमहाभूतात्मक ६ रस होते हैं ॥ ५५ ॥ पंचमहाभूतोंके न्यूनाधिक्यका फल | न्यूनातिरेकविशेषान्महाभूतानामिवजङ्गमस्थावराणांनानावर्णाकृतिविशेषाः षऋतुकत्वाच्चकालस्य उत्पन्नोमहाभूतानांन्यूनातिरेकविशेषः ॥ ५६ ॥
इन पंच महाभूतों के ही न्यूनाधिक भावसे सम्पूर्ण स्थावर जंगम जगत् के वर्ण और आकृतिमें भेद होता है । एवम् छः ऋतुओंके भेदसे कालजनित करणोंसे महा मूतोंके गुणोंमें न्यूनाधिकता होती है ॥ ५६ ॥
अग्निमारुतात्मक रसोंके कर्म । तत्राग्निमारुतात्मकारसाः प्रायेणोर्द्ध भाजोलाघवात्पूवकत्वाच्च वायोरूर्द्धज्वलनत्वाच्चवह्नेःसलिल पृथिव्यात्मकास्तुप्रायेणा
धोभाजः पृथिव्यागुरुत्वान्निम्नगत्वाच्चोदकस्यव्यामिश्रात्मकास्तुपुनरुभयतोभागभाजः ॥ ५७ ॥
इन द्रव्यों में अग्नि और वायुआत्मक रस प्रधान कटुद्रव्य चरगति और लघुता आदि वायु गुण होनेसे और ऊर्द्धगति आदि अग्निके गुण होनेसे शरीर के ऊपरके भाग अपने गुणोंको दिखाते हैं । जल और पृथ्वीप्रधान रस जलकी गति नीचे गमन करनेवाली और पृथ्वीके गुण गुरुत्व होनेसे शरीर के नीचे के भागमें अपनी क्रियाको करते हैं ऊपर के भाग में क्रिया करनेवाले और नचिके भागमें क्रिया करनेवाले सब प्रकार के रसोंको मिलानेसे उभयतः क्रिया करते हैं ॥ ५७ ॥
मधुरादि ६ रसों के गुणागुण ।
तेषां षण्णांरसानामेकैकस्य यथाद्रव्यगुणकर्माण्यनुव्याख्यास्या -