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सूत्रस्थान - अ० २६.
( २९६ )
स्वादुरम्लादिभिर्योगंशेषैरम्लादयः पृथक् ।यानिपञ्चदशैतानि द्रव्याणिहिरसानितु ॥ ३० ॥ पृथगम्लादियुक्तस्ययोगः शेषः पृथग्भवेत् । मधुरस्यतथाम्लस्यलवणस्यकटोस्तथा ॥ ३१ ॥ त्रिरसानियथासंख्यं द्रव्याण्युक्तानिविंशतिः । वक्ष्यन्तेतुचतु"केणद्रव्याणिदशपञ्चच ॥ ३२ ॥ स्वाद्वम्लौसहितौयोगंलवणाद्यैः पृथग्गतौ । योगंशेषैः पृथग्यातः चतुष्कं रससंख्यया ॥३३॥ सहितौ स्वादुलवणौ तद्वत्कटादिभिः पृथक् । युक्तौशेषैः पृथग्योगं यातः स्वादूषणौयथा ॥ ३४ ॥ कट्ठाद्यैरम्ललवणौसंयुक्त सहितौपृथक् । यातःशेषैः पृथग्योगंशेषैरम्लकटूतथा ॥ ३५ ॥ युज्यते तुकषायेणसतिक्तौलवणोषणौ । षट्तुपच्चरसान्याहुरेकैकस्यापवर्जनात् ॥ ३६ ॥ षट्चैवैकरसानि स्युरेकंषड्रसमेवतु । इतित्रिषष्टिर्द्रव्याणां निर्दिष्टारससंख्यया ॥ ३७ ॥ त्रिषष्टिः स्यात्वसंख्येयारसानुरस कम्पनात् । रसास्तरतमाभ्यां तां संख्यामभिपतन्तिहि ॥ ३८ ॥
मधुर आदिक जो छः रस हैं उनमेंसे स्वादुरसका अम्ल आदिके संग दो दोका संयोग करनेसे पांच प्रकार होतें हैं । जैसे मधुराम्ल, मधुरलवण, मधुरतिक्त, मधुरकटु, मधुरकषाय । एवम् अम्लरसका दो दोसे संयोग कियाजाय तो चार प्रकार होते हैं जैसे अम्ललवण, अम्लतिक्त, अम्लकटु, अम्लकषाय यह चार प्रकार हुए, क्योंकि अम्लमधुर पहिले पांच प्रकारोंमें आचुका है इसलिये छः रसोंमेंसे एक रसके दूसरें दूसरेके साथ मिलानेसे जिस रसका मिलान किया जायगा वह कम होनेसे पांच प्रकारके होते हैं । दूसरे रसका मिलान करनेसे चार प्रकार रह जाते हैं । इसी प्रकार लवणरसका मिलान करनेसे तीन प्रकार होते हैं । तिक्तरसका मिलान करनेसे दो प्रकार होते हैं तथा कटुरस केवल एक प्रकारका रहजाता है । इस प्रकार सब मिला १५ प्रकारके हुए। तीन तीनके मिलानेसे मधुर रस १० प्रकारका अम्लरस ६ प्रकारका, लवणरस ३ प्रकारका होता है एवम् तिक्तरस १ प्रकारका हुआ । कुल मिल कर २० प्रकार हुए । चार चारके संयोग से मधुर रस १० प्रकारका, अम्ल रस ४ प्रकारका, लवण रस १ प्रकारका इस सबको जोडदेनेसे १५ होते हैं । पांच पांचके - मिलाने से मधुर ५ प्रकारका, अम्ल १ प्रकारका, दोनोंको मिलानेसे ६ प्रकार हुए।