________________
सूत्रस्थान - अ० २६. ञ्चिदभिधास्यामः । सर्वद्रव्यं पाञ्चभौतिकमस्मिन्नेवार्थेतच्चेतनावदचेतनंञ्च । तस्यगुणाः शब्दादयोगुर्वादयश्चद्रवान्ताः । कर्मपञ्चविधमुक्तंवमनादि ॥ २१ ॥
इसी लिये कारणोंकी अपेक्षा करतेहुए ६ छहों रसोंके द्रव्यादिकोंकी सहकारितासे अलग रलक्षणोंको कहते हैं । एवम् द्रव्यभेदका आश्रय लेकर रसोंके गुणोंको कहते हैं । सम्पूर्ण द्रव्य पांचभौतिक हैं फिर इनके चेतन और अचेतन भेदसे दो प्रकार हैं। फिर उनके गुण शब्दादिक और गुरु आदिक द्रवपर्यन्त होतेहैं । एवम् पांच प्रकारका वमनादिक कर्म है ॥ २१ ॥
पार्थिवद्रव्यों के गुणकर्म | तत्रद्रव्याणिगुरुखरकठिनमन्दस्थिरविषदसान्द्रस्थूलगन्धगु
( २९१ )
५
. णबहुलानि पार्थिवानितान्युपचयसङ्घातगौरवस्थैर्य्यक राणि२२॥ उन द्रव्यों में गुरु, खर, कठिन, मंद, स्थिर, विषद, सान्द, स्थूल और गंध ये गुण पार्थिव (पृथ्वीसम्बन्धी ) होते हैं । पार्थिव द्रव्य शरीरको पुष्ट, कठिन, गुरुता और स्थिरताके करनेवाले होते हैं ॥ २२ ॥
जलीय द्रव्य | द्रवस्निग्धशीतमन्दमृदु पिच्छिल रसगुणबहुलान्याप्या नितान्युत्क्केदस्नेहबन्धविष्यन्दप्रह्लादकराणि ॥ २३ ॥
जो द्रव्य द्रव, स्नग्ध, शीत, मन्द, मृड, पिच्छिल, सर तथा रसगुणप्रधान होते हैं उनको जलीयद्रव्य जानना । जलीयद्रव्य क्वेद, स्निग्धता, बंध, विष्यंद और आह्लादता करनेवाले हैं ॥ २३ ॥
आग्नेय द्रव्य | उष्णतीक्ष्णसूक्ष्मलघुरूक्षविषद रूपगुणबहुलानि आग्नेयानितानिदाहपाकप्रभा प्रकाशवर्णकराणि ॥ २४ ॥
जो द्रव्य उष्ण, तीक्ष्ण, सूक्ष्म, लघु, रूक्ष, विषद, एवम् रूप-गुण- प्रधान होते हैं उनको आग्नेय जानना । आग्नेय द्रव्य - शरीरमें दाह, पाक, प्रभा, प्रकाश और वर्णको करते हैं ॥ २४ ॥
वायवीय द्रव्य 1.
लघुशीत रूक्षखरविषद् सूक्ष्म स्पर्शगुण बहुलानिवायव्यानितानिरौक्ष्यग्लानिविचारवैषद्यलाघवकराणि ॥ २५ ॥