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(२५२.) चरकसंहिता-भा० टी० ।
शोषा ग्रहणीदोषैयाधिभिःकर्शिताश्चये।
तेषांक्रव्यादमांसानांबृहणालघवोरसाः ॥ २४ ॥ जो मनुष्य शोष, अर्श, ग्रहणी आदि रोगोंसे क्षीण होगये हों उनको मांस भक्षण करनेवाले जीवोंका मांसरस बृहण कर्ता तथा लघु कहा गया है ॥ २४ ॥
स्नानसुत्सादनंस्वप्नोमधुराःस्नेहवस्तयः ।
शर्कराक्षीरसपीषिसर्वेषांविद्धिवृंहणम् ॥ २५॥ स्नान, उत्सादन, निद्रा, मधुर पदार्थ, स्नेहवस्ती, शर्करा, दूध और घी ये सब मनुष्यों के लिये बृहण ( पुष्ट ) करनेवाले हैं ॥ २५ ॥
रूक्षण । कटातिक्तकषायाणांसेवनं स्त्रीष्वसंयमः।
खलीपिण्याकतक्राणांमध्वादीनांचरूक्षणम् ॥ २६॥ कडवे, कषैले, चपरे रसोंका सेवन, स्त्रियोंका अत्यन्त सेवन, खल, तिलकल्क, छाछ और मधु आदि रूखे पदार्थ सव मनुष्योंको रूक्षणकर्ता कहे जाते हैं॥२६॥
अभिष्यन्दामहादोषामर्मस्थाव्याधयश्चये।
ऊरुस्तम्भप्रभृतयोरूक्षणीयानिदर्शिताः ॥ २७॥ . जिनके शरीरमें अधिक मोटा होनेके कारण अथवा दोषोंकी वृद्धिके कारण गिलगिलाहट उत्पन्न होगई हो और कफ वढाहुआ हो वे तथा मर्मस्थानमें बढे हुए दोष एवम् ऊरुस्तम्भ आदि रोग रूक्षण करनेके योग्य हैं ॥ २७ ॥
स्नेह्यस्वेद्य। स्नेहाःस्नेहयितव्याश्चस्वेदाःवद्याश्चयेनराः।
स्नेहाध्यायेमयोक्तास्तेस्वेदाख्येचसविस्तराः॥ २८॥ सब प्रकारके स्नेह और स्नेहनके योग्य मनुष्य तथा सव प्रकारके स्वेद और स्वेदनयोग्य मनुष्य हम स्नेह स्वेदाध्यायमें विस्तारपूर्वक वर्णन कर चुके हैं ॥२८॥ .
स्तंभनके योग्य।. . .... द्रवंतनुसरयावच्छीतीकरणमौषधम् । .
स्वादुतिक्तंकषायञ्चस्तम्भनंसर्वमेवतत् ॥ २९ ॥ द्रव, तनु, सर, शीतल, स्वादु, तिक्त और कषाय द्रव्य स्तम्भन कहेजातेहैं २९॥