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चरकसंहिता - भा० टी० ।
स्नेहन द्रव्यके गुण |
द्रवंसूक्ष्मंसरंस्निग्धंपिच्छिलंगुरुशीतलम् । प्रायोमन्दंमृदुचयद्रव्यं तत्स्नेहनंमतम् ॥ १२ ॥
जो द्रव्य द्रव, सूक्ष्म, सर, स्निग्ध, पिच्छिल, गुरु, शीतल और मन्द तथा मृदु हो वह स्नेहन कहा जाता है ॥ १२ ॥
स्वेदन द्रव्य | उष्णतीक्ष्णंसरंस्निग्धंरूक्षंसूक्ष्मंद्रवंस्थिरम् द्रव्यंगुरुचयत्प्रायःतद्धिस्वेदनमुच्यते ॥ १३ ॥
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जो द्रव्य उष्ण, तीक्ष्ण, सर, स्निग्ध, रूक्ष, सूक्ष्म, द्रव, स्थिर और गुरु हो उसको प्रायः स्वेदन कहते हैं ॥ १३ ॥
स्तम्भन द्रव्यके गुण ।
शीतंमन्दंमृदुश्लक्ष्णरूक्षंसूक्ष्मंद्रवंसरम् ।
यद्द्रव्यं लघुचोद्दिष्टंप्रायस्तत्स्तम्भनंस्मृतम् ॥ १४ ॥
जो द्रव्य शीतल, मन्द, मुटु, श्लक्ष्ण, रूक्ष, सूक्ष्म, द्रव, सर और लघु हो. उसको प्रायः स्तम्भन कहतेहै ॥ १४ ॥
लंघन ।
चतुष्प्रकारासंशुद्धिः पिपासा मारुतातपौ ।
पाचनान्युपवासश्च व्यायामश्चेतिलंघनम् ॥ १५ ॥
चार प्रकार की संशुद्धि होती है अर्थात् संशोधन होता है और प्यास, पवनक सेवन, धूप, पाचन, उपवास एवम् परिश्रम यह लंघन कहे जातेहैं ॥ १५ ॥ लंघनयोग्य प्राणी |
प्रभूतश्लेप्मपित्तास्रमलाः संदुष्टमारुताः । बृहच्छरीरावलिनोलंघनीयाविशुद्धिभिः ॥ १६ ॥
जिनके शरीर उलेष्म, पित्त, रुधिर और मल वढेहुए हों तथा पवन दूषित होगया हो एवम जो स्थूल और वलवान् होनेसे संशोधनके योग्य हैं वह मनुष्य लंघनीय है ॥ १६ ॥
येषांमध्यवलारोगाः कफपित्तसमुत्थिताः । वम्यतीसारहृद्रोगविसृच्यलसकज्वराः ॥ १७ ॥ विबन्धगौरवोद्गारहल्लासारोचकादयः । पाचनस्तानभिषक् प्राज्ञः प्रायेणादावपाचरेत् ॥१८॥