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सूत्रस्थान-अ० २४.
(२६७) - संन्यासरोगकी चिकित्सामें शीघ्रता । दुर्गेऽम्भसियथामजद्भाजनन्वरयाबुधः।
गृह्णीयात्तलमप्राप्तथासंन्यासपीडितम् ॥४३॥ जैसे अथाह जलमें डूबते हुए पात्रको डूबजानेसे पहिले ही निकाल लिया जाय तब वह हाथ लग सकताहै नहीं तो फिर उसका हाथ आना कठिन होता है । इसी प्रकार संन्यासरोगीका रोग भी जबतक जड न पकडलेवे तबतक उसकी चिकित्सा करनसे वह अच्छा हो सकता है । नहीं तो उसका बचना भी कठिन है ॥ ४३ ॥
संन्यासरोगमें चिकित्सा ।। अञ्जनान्यवपीडाश्चधूमःप्रधमनानिच । सूचीभिस्तोदनशस्त्रैहिःपीडानखान्तरे॥४४॥ लुञ्चनंकेशलोम्नांचदन्तैर्दशनमेवच । आत्मगुप्तावघर्षाश्चहतास्तस्यावबोधने ॥४५॥ अब सन्यासरोगकी चिकित्सा कहतेहैं । संन्यास रोगमें होश लानेके लिये अंजन और पीडन, नस्य, धूम्रप्रयोग, प्रधमन, नस्य, सूई चुभाना, शस्त्रसे दाग: देना, नखोंका पीडन करना, बालोंको खींचना, दांतोंसे काटना, कौंचकी फली लगाना आदि उपाय करने चाहिये। ऐसा करनेसे संन्यास छूटकर चैतन्यता लाभ होसकती है ॥ ४४ ॥ ४५ ॥
संमूर्छितानितीक्ष्णानिमद्यानिविविधानिच । प्रभूतकटुतिक्तानितस्यास्येगालयेन्मुहुः॥ ४६ ॥ मातुलुङ्गरसंतद्वन्महौष. धसमायुतम् । तद्वत्सौवीरकंदद्याद्युक्तमयाम्लकाजिकैः॥४७॥ हिङ्गुषणसमायुक्तयावत्संज्ञाप्रबोधनात्। प्रबुद्धसंज्ञमन्नैश्चलघुभिस्तमुपाचरेत् ॥ ४८॥ विस्मापनःस्मारणैश्चप्रियश्रुतिभिरेवच । पटुभिर्गीतवादित्रशब्दैश्चित्रैश्चदर्शनैः॥ ४९ ॥ प्रेस नोल्लेखनैधूमैरञ्जनैःकवलग्रहैः। शोणितस्यावसेकैश्चव्यायामोद्धर्षणैस्तथा ॥ ५॥ बेहोश मनुष्यको जब तक होश न आवे तब तक उसके मुख पर अनेक तरहके. समूच्छित और तीक्ष्ण मद्य तथा अत्यन्त चरपरे रसयुक्त पतले पदार्थोके छोटे देने चाहिये ॥ ४६॥ विजौरेके रसमें सोंठका चूर्ण और काला नमक मिलाकर अथवा संचर नमक मिलाकर मद्य एवम् खट्टी कांजी, हींग और मिर्चका चूर्ण मिलाकर