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चरकसंहिता - भा० टी० ।
सुरा, सौवीर, तुपोदक, मैरेय, मेदक, धान्याम्र यह छः प्रकारके आसव धान्य उत्पन्न होते हैं । मुनक्का, खजूर, काश्मरोक फल, धामन, खिरनी, केतकी फल, फालसा, हरडे, आमले, बहेडे, जामुन कैथ, मौलसरी, वेर, जंगलीवेर, अखराट, मियाल, कटहर, वडके फल, पीपलके फल, पिलखनेके फल, अमाडा, गूलर, अजमोद, सिंघाडा, शाखिनी यह २६ छब्बीस प्रकारके आसव फलोंसे प्रगट होते हैं । शालपर्णी, असगंध, सुहांजना, शतावर काला निशोथ, लाल निशोथ, दंती, द्रवंती, विल्व, एरंड, चित्रक, इनके मूलोंसे ११ ग्यारह प्रकारके आसव बनते हैं । शालवृक्ष, प्रियंगु, अश्वकर्णशाल, रक्तचंदन, तिनस, खैर, श्वेतखैर, सप्तपर्ण, अर्जुन, विजयसार, अरिमेद, तिन्दुक, किरवण, शमीवृक्ष, वेरी, शीशम, सिरस, अशोक, धन्वन, महुआ, इन वीस प्रकारके वृक्षोंके सारसे २० वीस प्रकार के आसव बनते हैं ॥ ५० ॥
पद्मोत्पलनलिन कुमुद सौगन्धिकपुण्डरीकशतपत्रमधूकप्रियङ्गुधातकीपुष्पैर्दशमाःपुष्पासवाः । इक्षुकाण्डेक्षुइक्षुबालिकापुंडूकचतुर्थाः काण्डासवाः । पटोलताडपत्रासवौद्दभवतः । तिलकलोभैलवालुकक्रमुकचतुर्थास्त्वगासवाभवन्ति । शर्क - रासवएकएव । इत्येषामासवानामासुतत्त्वादासवसंज्ञाएवमेपामासवानांचतुरशीतिः परस्परेणासंस्पृष्टानामासवद्रव्याणासुपनिर्दिष्टाः । द्रव्यसंयोगविभागस्त्वेषां वहुविकल्पसंस्कारश्च यथास्त्रयोनिसंस्कारसंस्कृताश्वासवाः स्वकर्म कुर्वन्तिसंयोगसंस्कारदेशकालमात्रादयश्चभावास्तेषां तेषामासवान तेते समुपदिश्यन्ते तत्तत्कार्यमभिसमीक्ष्येति ॥ ५१ ॥
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कमल, उत्पल, नलिन, कुमुद, कहार, पुण्डरीक, शतपत्र, महुएका फूल, प्रियंगुके फूल, धावे के फूल इनसे १० दस प्रकारके फूलोक आसव बनते हैं । पटोलपत्र और देवदालीके पत्रों से २ प्रकारके आसव बनते हैं । ईख, कांडेल,
वालिका, पुण्यक, ये चार प्रकार के आसव डांडरों से बनते हैं । तिल्वक लोथ, एट्याक, सुपारी इन चार वृक्षांकी छालसे चार प्रकारके नाव बनते । शर्करा शर्करा एक १ प्रकारका बनताहे । इन आपकी उन २ पदाय में व्याप्त रहने और दबाकर निकाले जानेसे आसव संज्ञा, इस प्रकार चांगली प्रकारके आसवका उपदेश किया गया है ।