________________
. .सरस्थान-अ० २४.
(२६५) सकोधपरुषाभाषसंप्रहारकलिप्रियम् ।
विद्यात्पित्तमदाविष्टरक्तपीतसिताकृतिम् ॥ २९॥ पित्तणनित मदमें मनुष्य कोपयुक्त और माह भाषण करनेवाला तथा मारनेको दौरनेवाला और फलाए मारनेवाला होता है । उसका वर्ण लाल, पीला और काले रंगका होता ॥२९॥
स्वल्पसम्बन्धवचनंतन्द्रालस्यसमन्वितम्।
विद्यारकफमदाविष्टंपाण्डेप्रध्यानतत्परम् ॥ ३०॥ कफगानित मदरोगमें भंटसंट पकना, संसा, मालस्य इन लक्षणोंवाला होता और उसका पर्ण पांडुरंगका होता है तथा यह फूत्कार करने में तत्पर रहा॥३०॥ सर्वाण्येतानिरूपाणिसन्निपातकतेमदे। जायन्तेशाम्यतित्वाशुमदोमयमदारुतिः ॥ ३१ ॥ यश्चमप्यमदःप्रोक्तोविषजो
रौधिरशयः । सर्वएतेमदानवातपित्तकफाश्रयात् ॥ ३२॥ . सीन दोषोंगो लक्षण मिलनसे विदोषण गदरोग जानना । गपपागसे उत्पन हुमा मदरोग शीघ्र ही प्रगट होजाताद और शीघ्र ही नाशको प्राप्त होता है । अन्य भी जितने मकारके मदरोग जैसे मदानित, विषजनिरा, रतणनिरा यह सब पारा पित्त, कफ आश्रय होकर ही होते ॥ ३१॥ ३२ ॥
वातादिनितराचाफा लक्षण । नीलवायदिवारुष्णमाकाशमथवारणम् पश्यस्तमःप्रविशति शीपश्यप्रतिबुध्यते ॥ ३३ ॥ वेपथुश्चाङ्गमर्दशप्रपीडाहृदयस्य च । कायश्यावारुणाछायाम_येवातसम्भवे ॥ ३४ ॥ जो मनुष्य भागाशको नीला, काला, लाल देखसाभा शाट अपने शापको अन्धकारमें प्रवेश होता मालूम करे, शीघ्र ही होशमें भाजाय तथा निराके शरीरंगें कम्प, अंगमर्थ, सस्पीडा, शता,श्यामसा तथा अरुणता प्रतीत हो उसको वाता नित मूली जानना चाहिये ॥ ३३ ॥ ३४ ॥
रक्तहरितवर्णवावियत्पीतमथापिवा । पश्यंस्तमःप्रविशतिस: स्वेदशप्रयुध्यते ॥ ३५॥ सपिपासःससन्तापोरक्तपित्ताकुले
क्षणः । संभिन्नवर्चा:पीताभोमायेपित्तसम्भवे ॥ ३६॥ पित्तकी भूगि भालाश लाल,हरित,पीला दिखाई देकर शट अंधकारमें प्रवेश